बड़े पैमाने पर प्रवासन प्रभाव शहरों और उनके आवास बाजार कैसे

एक शहर से दूसरे लोगों के प्रवासन एक प्राकृतिक और वैश्विक घटना है लोग मुख्य रूप से सामाजिक-आर्थिक लाभ के लिए एक नए स्थान पर स्थानांतरित होते हैं, जो मुख्य पुल-कारक है। शहरीकरण के कारण ग्रामीणों से शहरी समूहों के लोगों के आंदोलन का कारण बनता है। भारत में, प्रवासियों की जनसंख्या 45.36 करोड़ के करीब है और देश में हर तीसरे नागरिक एक प्रवासी हैं। जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत के दक्षिणी राज्यों जैसे तमिलनाडु और केरल, हाल के वर्षों में बड़े पैमाने पर प्रवासण हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के मुताबिक अगले 12-15 वर्षों में अधिकांश मेट्रोपॉलिटन शहरों की आबादी दोगुनी हो जाएगी गरीबों के बड़े पैमाने पर प्रवासन शहरों के आर्थिक विकास को प्रभावित कर सकता है और शहरी वातावरण खराब कर सकता है, जिससे गरीबी, असमानता, असुरक्षा और शोषण हो सकता है। अचल संपत्ति बाजार में गहन अशांति के साथ-साथ आवास की कमी और नागरिक अवसंरचना का टूटना भी देखा जाएगा। यहां बताया गया है कि माइग्रेशन किसी शहर के रीयल एस्टेट बाजार को कैसे प्रभावित करता है। लोग क्यों माइग्रेट करते हैं? बेहतर आर्थिक अवसर: ग्रामीण क्षेत्रों की संतृप्ति, युवाओं को बेहतर रोजगार या व्यावसायिक संभावनाओं के लिए शहरी केंद्रों में बड़ी संख्या में आकर्षित करती है। परिवार के सदस्य जो बाद में उन्हें शामिल करते हैं, आगे शृंखला प्रवासन की ओर जाता है। स्थिति में बदलाव: सामाजिक या वित्तीय स्थिति में बदलाव से प्रवासन हो सकता है। महिलाओं के मामले में, विवाह प्रवास का एक प्रमुख कारण माना जाता है बेहतर रहने की स्थिति: शहरी इलाकों में गुणवत्ता के बुनियादी ढांचे की विशेषता है। बेहतर शिक्षा या चिकित्सा सुविधाओं की तलाश में लोग सामाजिक स्वास्थ्य सुविधाओं की तलाश के लिए पड़ोसी शहरों में जा सकते हैं। पर्यावरण कारक: प्राकृतिक आपदाओं की घटना उदा। भूकंप, बाढ़, अकाल, आदि, या प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों में भी माइग्रेशन का कारण बनता है। राजनीतिक गड़बड़ी: शहर या सामुदायिक संघर्ष में राजनीतिक अस्थिरता कुछ आबादी वाले आबादी के लिए ड्राइविंग कारक हैं। प्रवासन और आवास के बीच संबंध जनसंख्या वृद्धि शहरी जमाव का रास्ता देती है, जो शहर परिधि पर नए बस्तियों के उद्भव को दर्शाती है इसके अलावा, प्रवासन शहरी केन्द्रों के बुनियादी ढांचा की क्षमता को बहुत प्रभावित करता है। ये सभी कारक अंततः सरकार और नियोजन प्राधिकरणों के लिए चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जिन्होंने प्रवासियों के लिए पर्याप्त आवास, स्वच्छता और आवश्यक बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराई है। अनियोजित और भीड़भासी बस्तियां गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को बाजार आंदोलन का प्रभाव भी आमंत्रित करती हैं जैसे भूमि की गिरावट, पानी की कमी, बाढ़, दोषपूर्ण जल निकासी व्यवस्था आदि। स्मार्ट शहरी नीतियों की आवश्यकता है जैसा कि शहरीकरण जारी है, प्रवासियों के कल्याण और उनके एकीकरण में चिंता शहरी अर्थव्यवस्था अत्यंत महत्व का एक मुद्दा बन जाती है ग्रामीण-शहरी प्रवास और शहरी गरीबों की बढ़ती संख्या का प्रतिकूल परिणाम, मलिन बस्तियों का विकास रहा है अधिकांश मेट्रो शहरों में करीब आधा आबादी, झुग्गी बस्तियों में रहते हैं। आवासीय आवास शहरीकरण के देशों में आवास बाजार का एक महत्वपूर्ण घटक भी है, क्योंकि इससे अधिक श्रम गतिशीलता की अनुमति मिलती है। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कम-आय वाले लोग अक्सर अधिकतर किराये की मकान पर निर्भर करते हैं। इसके अलावा, अस्थायी प्रवासियों ने किराये आवास क्षेत्र के विकास में भी योगदान दिया है। मेट्रो शहरों में किराये के आवास बाजार का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि अधिकांश किरायेदारों को अनौपचारिक क्षेत्र में समायोजित किया जाता है, अर्थात बिना किसी लिखित अनुबंध के। यह मुख्य रूप से आवास की अंतर्निहित अनौपचारिकता के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है, अर्थात झोपड़िया आवास भारत में किराये के आवास बाजार में कई सुधारों के लिए पर्याप्त अवसर हैं हाल ही में, सरकार ने एक घर किराये की नीति के साथ बाहर आ गया है, ताकि प्रवासियों को निश्चित अवधि के लिए सरकारी निकायों से किराए पर एक घर ले सकें और बाद में, किश्तों में पूरी लागत का भुगतान कर उन्हें खुद कर सकें। भारत रेंटल मैनेजमेंट कंपनियों (आरएमसी) और यूरोप में हाउसिंग एसोसिएशन और सिंगापुर, शिकागो जैसी दुनिया के लोकप्रिय शहरों में स्मार्ट हाउसिंग नीतियों से क्यू ले सकता है। भारत में प्रवास मुक्त है, जहां एक ग्रामीण या शहरी निवासी प्रवास कर सकते हैं किसी भी प्रतिबंध के बिना देश के किसी भी हिस्से में, शहरी आवास नीतियों के लिए दृष्टिकोण चीन में काफी भिन्न है। चीन में, हुकू नामक एक आवासीय परमिट प्रणाली चीनी लोगों को शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में वर्गीकृत करती है, जो विशेष लाभ के हकदार हैं इसके अलावा, एक बड़े पैमाने पर शहरीकरण ड्राइव में, चीन ने बीजिंग के पास नए शहर Xiongan जैसे नए क्षेत्रों का विकास किया है। एक विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड), ज़िओनग्न एक क्षेत्र का लगभग तीन गुना न्यूयॉर्क का होगा। ग्रामीण-शहरी विभाजन को पुल करने के लिए, सरकार पहले से ही श्यामा प्रसाद मुखर्जीजीआरआरन मिशन जैसे पहल कर रही है, जिसे 2015-16 के बजट में घोषित किया गया था, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों को आर्थिक, सामाजिक और शारीरिक रूप से स्थायी स्थान में परिवर्तित किया जा सके। सरकारी विभागों को हाल ही में अप्रयुक्त भूमि की पहचान करने के लिए कहा गया था, विशेषकर विकसित सरकारी कालोनियों में, किफायती आवास परियोजनाओं को योजना बनाने के लिए। सरकार की महत्वाकांक्षी 'हाउसिंग फ़ॉर ऑल' परियोजना से बड़ी संख्या में प्रवासियों को गांवों में, शहरों में लाने की उम्मीद है इस प्रकार, नए शहरों को प्रति वर्ग किलोमीटर लगभग 12,000 लोगों की घनत्व के साथ बनाया जाना चाहिए। भारत सरकार ने इस तथ्य पर संज्ञान लिया है कि 'हाउसिंग फॉर ऑल' न केवल किफायती आवास इकाइयों को स्वामित्व के लिए कॉल करता है, बल्कि किराये के इकाइयों के प्रचुर मात्रा में स्टॉक भी है।

धनबाद : महंगाई की आग में घी डालने वाला है सरकार का हठ और कृषि बाजार का आंदोलन

आवक ठप होने से बाजारों में होगा फलों और सब्जियों का अभाव, गहराएगा संकट

एकजुटता जताते कृषि बाजार समिति के व्यवसायी

एकजुटता जताते कृषि बाजार समिति के व्यवसायी

Dhanbad : धनबाद ( Dhanbad ) झारखंड सरकार द्वारा लगाए गए 2% शुल्क के विरोध में कृषि बाजार का आंदोलन महंगाई की आग में घी की तरह असर डालने वाला है. 16 मई से आवक ठप कर दिया गया है. अगले 2 दिनों में इसका असर धनबाद के बाजारों में दिखने लगेगा. बाजारों में फलों और हरी सब्जी की किल्लत हो जाएगी. जानकारी के अनुसार कृषि बाजार के पास अगले 2 से 3 दिनों का ही स्टॉक बचा है.

15 दिन बाद खाद्यान्नों का मिलना भी दूभर

खत्म होने के कगार पर खाद्यान्न का स्टॉक

बरवा अड्डा स्थित कृषि बाजार समिति के कारोबारियों ने नया ऑर्डर देना बंद कर दिया है. आवक बंद होने के बाद खाद्यान्न का स्टॉक लगभग 15 दिनों का बताया जा रहा है. अगर थोक व्यापारियों का आंदोलन जारी रहा तो खाद्यान्न का मिलना दूभर हो जाएगा. जानकारी देते हुए विकास कंधवे ने बताया कि आवक बंद होने के बावजूद मंडी से कारोबार जारी रहेगा. गोदाम में जो भी स्टॉक है, मंडी में उपलब्ध कराया जाएगा. खरीद बिक्री होगी. हमारा मकसद आम जनता को परेशान करना नहीं. आंदोलन सरकार के खिलाफ है.

सप्ताह भर में होगा आलू प्याज का स्टॉक खत्म

सब्जी कारोबारी विजय साव के अनुसार सब्जियों का अधिक स्टॉक नहीं रखा जाता है. दो दिन में ही हरी सब्जी और फल सड़ने लगते हैं. इसलिए हड़ताल के दो से 3 दिन के भीतर सब्जी और फलों का स्टॉक जवाब दे देगा. आलू-प्याज का स्टॉक भी सप्ताह भर से ज्यादा का नहीं है.

आम लोग कर रहे राशन का स्टॉक

कृषि बाजार के आंदोलन की बात शहर में आग की तरह फैल गयी है. आम लोग खाद्यान्न का स्टॉक करने में जुट गए है. आवक ठप होने की खबर सुन उपभोक्ता सुनील श्रीवास्तव घर का राशन खरीदने दुकान पहुंचे. उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने फैसला वापस नहीं लिया और आंदोलन लंबा चला तो बाज़ारों में कालाबाज़ारी बढ़ेगी. इसीलिए वह घर के लिए राशन जमा कर रहे हैं.

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लोकल सब्जी के भाव होंगे दुगने से अधिक

अन्य राज्यों से आवक बंद होने पर धनबाद में हरी सब्जियों की भारी किल्लत होने की संभावना है. पूरा धनबाद अब लोकल सब्जियों पर निर्भर होगा. आसपास के इलाके से बाजार आंदोलन का प्रभाव शहर आने वाली सब्जियों की कीमत आसमान छूएगी. असर आम जनता की जेब पर पड़ेगा. पहले से ही महंगाई में आग लगी हुई है और अब सरकार के रवैये और व्यवसायियों के बाजार आंदोलन का प्रभाव आंदोलन का भुगतान भी आम जनता को ही करना पड़ेगा.

रिटेल दुकानदारों से बाजार समिति की अपील

समिति के महासचिव विकास कंधवे ने रिटेल दुकानदारों से मुनाफाखोरी नहीं करने की अपील की है. उन्होंने कहा है कि आंदोलन सरकार के खिलाफ है ना कि आम जनता के विरोध में. इसलिए ख्याल रखें कि जन साधारण को कोई परेशानी न हो. उन्होंने कहा है कि रिटेल दुकानदार अगर मुनाफाखोरी करते हैं तो उसका समर्थन बाजार समिति कतई नहीं करेगी.

किसान आंदोलन के ऐतिहासिक जीत पर चांडिल बाजार में की विजय सभा

Chandil : ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन चांडिल अनुमंडल कमिटी की ओर से किसान आंदोलन के ऐतिहासिक जीत पर चांडिल बाजार में नुक्कड़ सभा किया गया.
मौके पर उपस्थित ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन सराइकेला खरसावां जिला कमेटी के इंचार्ज आसुदेव महतो ने कहा कि प्रधान मंत्री ने तीनों काले कृषि कानूनों को खारिज किया. संयुक्त किसान मोर्चा, एसकेएम के बैनर तले एक साल से चल रहे किसान बाजार आंदोलन का प्रभाव आंदोलन की यह ऐतिहासिक जीत है. जिसमें एआईकेकेएमएस एक महत्वपूर्ण घटक है. इस जीत का विश्वव्यापी महत्व है. किसानों ने 700 किसानों के जीवन की कीमत पर यह जीत हासिल की है और अपने कठिन संघर्षों, बलिदानों के बल पर यह जीत हासिल की है. मौके पर एसयूसीआइ के अनंत महतो ने कहा कि एक बार फिर यह साबित हो गया है कि अन्तिम इतिहास जनता लिखती है. बॉर्डर अभी खाली किया जा रहा है. लेकिन लड़ाई अभी भी जारी रहेगी. बिजली बिल अभी तक वापस नहीं लिया गया है. अभी तक सरकार ने सभी फसलों को लागत मूल्य से 50 प्रतिशत अधिक एमएसपी पर खरीद की गारंटी की घोषणा नहीं की है. कमेटी बनाने की बात कही है जो कमेटी यह तय करेगी कि पूरे देश भर के किसानों को कैसे एमएसपी मिले. देश भर में किसानों के खिलाफ दर्ज सभी प्रकार के मामले वापस लेने की बात कही है. किसान आंदोलन के अपराधियों को अभी तक दंडित नहीं किया गया है. मोदी सरकार शहीद किसान परिवारों को मुआवजा देने की बात कही है. आगामी 15 जनवरी को फिर से संयुक्त किसान मोर्चा का बैठक होगा और आगे कि आंदोलन की रणनीति बाजार आंदोलन का प्रभाव तय होगी. इस अवसर पर आशु देव महतो, अनंत महतो, नेपाल किस्कू, भुजंग मछुआ, अनादि कुमार, मनोज महतो, धीरेंद्र गोढ, शिवनाथ महतो, खुशबू महतो, प्रभात कुमार महतो , युधिष्ठिर प्रमाणिक, आदि उपस्थित थे.

बाजार आंदोलन का प्रभाव

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विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक नर्मदा घाटी आज भी समृद्ध प्रकृति के लिए मशहूर है। घाटी में नदी किनारे पीढ़ियों से बसे हुए आदिवासी तथा किसान, मजदूर, मछुआरे, कुम्हार और कारीगर समाज प्राकृतिक संसाधनों के साथ मेहनत पर जीते आए हैं। इन्हीं पर सरदार सरोवर के साथ 30 बड़े बांधों के जरिये बाजार आंदोलन का प्रभाव हो रहे आक्रमण के खिलाफ शुरू हुआ जन संगठन नर्मदा बचाओ आंदोलन के रूप में पिछले 25 वर्षों से चल रहा है। विश्व बैंक को चुनौती देते हुए उसकी पोल इस आंदोलन ने खोली है। तीन राज्यों और केंद्र के साथ इसका संघर्ष आज भी जारी है। सरदार सरोवर के डूब क्षेत्र में दो लाख लोग बसे हैं। ये लोग वर्ष 1994 से डूबी जमीन के बदले जमीन के लिए लड़ रहे हैं। हजारों आदिवासी, बड़े-बड़े गांव और शहर, लाखों पेड़, मंदिर-मसजिद, दुकान-बाजार डूबे नहीं हैं, पर 122 मीटर की डूब में धकेले गए हैं। बड़े बांधों से समूचे घाटी के पर्यावरण को नुकसान के साथ लाखों लोगों का विस्थापन तो हुआ ही है, यह इस देश की धरोहर नर्मदा, वहां की उपजाऊ जमीन, जंगल और नदी के साथ भी खिलवाड़ है। सरदार सरोवर की लागत 4,200 करोड़ से बढ़कर 70,000 करोड़ रुपये हो गई। इसके बावजूद सिंचाई के लिए पानी और बिजली की बहुत कम उपलब्धता है, कच्छ-सौराष्ट्र बाजार आंदोलन का प्रभाव को पानी का अपेक्षित हिस्सा भी नहीं मिलता, तो फिर विनाश क्यों?

नर्मदा बचाओ आंदोलन ने अपने 25 वर्षों के अनुभव से देश बचाओ आंदोलन तक का संकल्प लिया है। नर्मदा घाटी आदिमानव का जन्म स्थान है। सतपुड़ा-विंध्य की पहाड़ी में बसे आदिवासी और निमाड़ के मैदानी गांव के लोग नर्मदा को मां मानकर उसी के सहारे उपजाऊ खेती या विविध पहाड़ी पैदावार और वनोपज के साथ जी रहे हैं। निमाड़ की धरती को पूंजी के चपेट से बचाने की तमन्ना वहां के किसानों में आज भी है। यहां के आंदोलनकारियों ने आज भी कुछ पहाड़ियों बाजार आंदोलन का प्रभाव पर जंगल बचा रखे हैं। इन लोगों ने 25 वर्षों के इस संघर्ष में पत्थर भी हाथ में नहीं लिया, वे सत्याग्रह को ही हथियार मानते रहे।

नर्मदा घाटी की लड़ाई विकास-विरोधी नहीं, बल्कि सही विकास के लिए है। यहां बन रहे या कुछ बन चुके 30 बड़े बांधों में से एक बांध में 248 छोटे ओर बड़े आदिवासी और किसानी गांवों की आहुति देकर, लाखों पेड़, जंगल, पक्के मकान, स्कूल, बाजार आदि खोकर भी किसे लाभ हो रहा है और कितना, यह सवाल इस आंदोलन के जरिये खड़ा किया गया। तब जाकर जापान, जर्मनी, कनाडा अमेरिका की कुछ संस्थाओं और विश्व बैंक को पुनर्विचार करते हुए अपना हाथ और साथ वापस खींचना पड़ा। वर्ष 1993 में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, जनशक्ति के साथ, हर मोरचे पर खड़ा हुआ यह आंदोलन पुनर्वास तथा पर्यावरण को होने वाले नुकसान को सही साबित करता गया। लेकिन महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात की सरकारों, ठेकेदारों और नौकरशाहों ने बांध नहीं रोका। आखिर सर्वोच्च न्यायालय को उसे 1995 से 1999 तक रोकना पड़ा। फिर वर्ष 2000 से आगे बढ़ा महाकाय बांध आज भी रुका है। आज 40,000 से अधिक परिवार डूब क्षेत्र में रह रहे हैं। वर्ष 1993 बाजार आंदोलन का प्रभाव से 1997 तक डूब चुकी आदिवासियों की जमीनें और गांव सुबूत हैं कि विनाश कितना भयावह होता है। लड़ते-झगड़ते और लाठी-गोली खाते महाराष्ट्र और गुजरात में कुल 10,500 आदिवासी परिवारों को तो जमीनें मिल गईं, लेकिन तीन राज्यों में आज भी हजारों परिवारों के पास रहने के लिए जमीन नहीं है।

नर्मदा घाटी की एक ऐसी प्राचीन संस्कृति को बरबाद करने की साजिश है, जो अपने आप में अनूठी है। यहां इतनी ईमानदारी है कि लकड़ी चाहे कटी हुई क्यों न पड़ी हो, उसकी चोरी नहीं होती थी। यहां के एक भी प्रतिशत लोग बाहर मजदूरी करने नहीं गए और नर्मदा किनारे के जल, जंगल, जमीन, मछली से ही अपनी जरूरतों की पूर्ति करते रहे। आज भी नर्मदा तट के आदिवासी घरों में 90 प्रतिशत चीजें बाजार से नहीं, जंगल से आती हैं। अपना हल खुद बनाने वाले यहां के किसान खेती के औजारों में लोहे का इस्तेमाल शायद ही करते रहे हों।

आजादी के बाद दशकों तक यहां के गांवों में शायद ही सरकारी स्कूल ढंग से चले हों। तब ग्रामीणों ने अपनी पाठशालाएं शुरू कीं। आज क्षेत्र में असंख्य पढ़े-लिखे बच्चे हैं, हालांकि इन्हें बाजार, शासन-प्रशासन तथा साहूकारों की लूट से पूरा छुटकारा नहीं मिला है। अपने वनोपज पर अधिकार होने के बावजूद उन्हें इसके सही दाम नहीं मिल पाए। दूसरी तरफ निमाड़ का मैदानी क्षेत्र फलोद्यान और समृद्ध खेती से पहचाना जाने वाला किसानी इलाका है। पिछले 20 वर्षों से भी अधिक समय से नर्मदा की जल संपदा से यहां के खेतों को उर्वर बनाते हुए अब अनेक किसान जैविक खेती पर भी उतर आए हैं, क्योंकि यह समय की मांग है।

यहां के आदिवासी-पहाड़ी पट्टी के हजारों परिवारों ने अपनी जमीन बेचने के बारे में कभी सोचा नहीं, लाखों का लालच भी उन्हें डिगा नहीं सका। निमाड़ के कृषि बाजार से जुड़े कुछ लोगों को दलालों ने फंसाया, तो उसमें भी करोड़ों के भ्रष्टाचार की पोल खोली गई। विस्थापित परिवारों के अनेक युवा नर्मदा बचाओ आंदोलन में लगातार सक्रिय हैं और कभी गले तक पानी में, कभी पुलिस के हमले के सामने और कभी अन्य आंदोलनों को समर्थन देने के लिए सदा तैयार रहते हैं। तमाम बाधाओं के बीच भी नर्मदा घाटी के लोगों ने हिम्मत और प्रतिबद्धता के साथ अपने गांव और खेती बचाकर रखी है। अहिंसा और सत्याग्रह के आधार पर चल रहा यह जनांदोलन यहां के लोगों के लिए जीवन का हिस्सा ही बन गया है।

331 मुखौटा कंपनियों में 167 बीएसई पर और 48 एनएसई पर लिस्टेड

प्रमुख शेयर बाजार बीएसई ने सेबी की 331 संदिग्ध मुखौटा कंपनियों के मामले में पांच और कंपनियों के शेयरों में कारोबार पर प्रतिबंध लगाया है. इसके साथ बीएसई अबतक कुल 167 कंपनियों पर पाबंदी लगा चुकी है. सेबी की सूची में से 164 कंपनियां विभिन्न दंडात्मक कार्वाई या निगरानी उपायों के कारण पहले ही निलंबित हैं. वहीं नैशनल स्टॉक एक्सचेंज पर सूचि में दी 48 कंपनियां लिस्टेड हैं.

संदिग्ध मुखौटा कंपनियां: बीएसई ने शेष पांच कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया

राहुल मिश्र

  • मुंबई,
  • 10 अगस्त 2017,
  • (अपडेटेड 10 अगस्त 2017, 5:44 PM IST)

प्रमुख शेयर बाजार बीएसई ने सेबी की 331 संदिग्ध मुखौटा कंपनियों के मामले में पांच और कंपनियों के शेयरों में कारोबार पर प्रतिबंध लगाया है. इसके साथ बीएसई अबतक कुल 167 कंपनियों पर पाबंदी लगा चुकी है. सेबी की सूची में से 164 कंपनियां विभिन्न दंडात्मक कार्वाई या निगरानी उपायों के कारण पहले ही निलंबित हैं. वहीं नैशनल स्टॉक एक्सचेंज पर सूचि में दी 48 कंपनियां लिस्टेड हैं.

बाजार नियामक ने शेयर बाजारों को संदिग्ध 331 कंपनियों के खिलाफ कठोर कदम उठाने का आदेश दिया है. इन कंपनियों पर कर संबंधी तथा अन्य नियमों के कथित उल्लंघन का आरोप है. कुल 167 सक्रिय कंपनियों में से बीएसई ने अधिकतम कारोबार प्रतिबंध श्रेणीबद्ध निगरानी व्यवस्था का छठा चरण सेबी के सात अगस्त के आदेश वाले दिन ही लगा दिया था.

यह आदेश 8 अगस्त से प्रभाव में आया. बंबई शेयर बाजार ने जारी परिपत्र में कहा कि शेष पांच प्रतिभूतियों को श्रेणीबद्ध निगरानी व्यवस्था के छठे चरण जीएसएम स्टेज 6 के अंतर्गत रखा है. यह आदेश 10 अगस्त से प्रभाव में आएगा और सेबी के निर्देश में जो भी प्रावधान है, वे सब लागू होंगे. ये पांच कंपनियां इंटर ग्लोब फाइनेंस लि., ग्रीन फायर एग्री कमोडिटीज लि., नोवा गोल्ड पेट्रो रिर्सोसेज लि., ट्रिटोन कार्प लि. तथा भाग्यश्री लीजिंग एंड फाइनेंस लि. हैं.

जिन 162 कंपनियों पर सोमवार को प्रतिबंध लगाया गया था, उनमें एटीएन इंटरनेशनल, आधुनिक इंडस्ट्रीज, अंशु क्लाथिंग, असम कंपनी, बिड़ला कोटसिन आदि शामिल हैं. इनमें से कुछ कंपनियों ने मुखैटा कंपनियों की सूची में शामिल किये जाने को लेकर प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण में सेबी और बीएसई के खिलाफ अपील दायर की.

48 मुखौटा कंपनियां एनएसई में सूचीबद्ध

नेशनल स्टाक एक्सचेंज एनएसई ने यह भी बताया कि उसने बाजार नियामक सेबी द्वारा भेजी 331 मुखौटा कंपनियों की सूची में अपने प्लेटफार्म पर सूचीबद्ध करीब 48 कंपनियों के बारे में सूचना एकत्रित करनी शुरू कर दी है. एनएसई इन 48 कंपनियों के बारे में सूचना प्राप्त करने के बाद रिपोर्ट सेबी को देगी.

इन 48 कंपनियों में से 10 सेबी के निर्देश आने से पहले ही निलंबित थी. सात अगस्त को बाजार नियामक सेबी ने शेयर बाजारों को 331 कंपनियों के बाजार आंदोलन का प्रभाव खिलाफ कार्वाई करने का निर्देश दिया था. इन कंपनियों के बारे में जानकारी कारपोरेट कार्य मंत्रालय ने दी थी.

शेयर बाजारों से कहा गया है कि वे इन कंपनियों के शेयरों को तत्काल प्रभाव से श्रेणीबद्ध निगरानी व्यवस्था के छठे चरण में रखे. एनएसई ने एक बयान में कहा, इन 331 कंपनियों से केवल 48 एनएसई में सूचीबद्ध हैं. इनमें से 48 कंपनियों में से सेबी के निर्देश आने से पहले ही 10 कंपनियां निलंबित हैं. नियामक ने एक्सचेंज से इन 48 कंपनियों से दस्तावेज लेकर उनका सत्यापन करने तथा बुनियाद की जांच करने को कहा है.

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