क्या रूसी सेना से बेहतर है यूक्रेन की सेना, या बेबुनियाद हैं कुछ संकेत?
रूस यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) में वैसे तो रूस की सेना (Russian Army) का पलड़ा भारी लगता है. देखने में आ रहा ह . अधिक पढ़ें
- News18Hindi
- Last Updated : October 11, 2022, 18:15 IST
हाइलाइट्स
8 साल पहले रूस के क्रीमीया पर हमले के समय यूक्रेनी सेना बहुत कमजोर थी.
इस बार यूक्रेन को पश्चिमी देश और यूरोप का पूरा सहयोग मिल रहा है.
कई विशेषज्ञों का मानना है कि रूसी सेना पर अब यूक्रेन का पलड़ा भारी पड़ रहा है.
रूस यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) अब रणनीतिक स्तर पर ज्यादा सक्रिय हो गया है. हाल की घटनाओं में दो दिन पहले यूक्रेन (Ukraine) और क्रीमिया के बीच स्थित पुल पर हुआ धमाका सबसे बड़ी घटना रही. इससे दोनों पक्षों के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर भी देखने को मिला. अभी के हालात तो यही बताते हैं कि युद्ध लंबे खिंच तो रहा ही है, इसे लंबा खींचा भी जा रहा है. रूस किसी निर्णायक कार्रवाई की जल्दी में नहीं है. तो क्या दोनों तरफ अभी बराबर की लड़ाई हो रही है या फिर यूक्रेन की सेना (Ukrainian Army) रूस पर वाकई भारी पड़ती दिख रही है जैसा कि पश्चिमी देश (Western Countries) दावा कर रहे हैं.
एक तरफा नहीं है ये युद्ध
फिलहाल रूस के कब्जे वाले पूर्वी यूक्रेन के इलाकों को जनमत संग्रह के जरिए रूस में शामिल कर लिया गया है जिसे पश्चिमी देशों से मान्यता नहीं मिली है. लेकिन इन इलाकों के अलावा रूस को यूक्रेन से कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है. यह भी जानना जरूरी होगा कि पश्चिमी देशों और यूरोप की मदद ने यूक्रेन को कितना ताकतवर बनाया है और रूस के लिए यूक्रेन को सबक सिखाना कितना मुश्किल कर दिया है.
8 साल पहले
जब साल 2014 में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी सैनिकों को यूक्रेन में सबसे पहले क्रीमिया और फिर डोनबास की पूर्वी सीमा पर भेजा था, तब बेशक रूस की सेना बहुत ही बेहतर थी और यूक्रेनी सेना पर हर तरह से भारी थी और नतीजा भी उम्मीद के मुताबिक ही देखने को मिला था. लेकिन आठ साल बाद स्थितियां बदल गई हैं.
क्यों बदले हालात
यह सच है कि रूस की ताकत तो कम नहीं हुई, लेकिन युक्रेन की सेना भी उतनी कमजोर नहीं रही जितनी 8 साल पहले थे. इसके कई कारण बताए जा रहे हैं. इसमें सबसे बड़ा कारण है कि यूक्रेन को उसके साथियों से भारी मदद मिल रही है. जिसमें अमेरिका ब्रिटेन सहित बहुत से पश्चिमी देश और यूरोप के कई देश शामिल हैं. इन देशों से यूक्रेन को हथियार, इंटेलीजेंस सहयोग, नियोजन सहायता, नुकसान की भरपाई के लिए आर्थिक सहायता, यूक्रेन छोड़ने वालों के लिए हर तरह की मदद मिल रही है.
इस बार के युद्ध (Russia Ukraine War) में यूक्रेनी सेना ने कई मौकों पर खुद को रूसी सेना से बेहतर साबित किया है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
क्षमताओं में दिख रहा है भारी अंतर
ब्लूमबर्ग के लेख के मुताबिक ऐसा लग रहा है कि 8 साल बाद हालात पलट गए हैं. जहां एक तरफ यूक्रेन को भरपूर मदद मिल रही है. रूसी सेना के जनरल गलती पर गलती कर रहे हैं. विशेषज्ञों ने यह भी देखा है कि दोनों ही सेनाओं का लड़ने का तरीका भी बहुत अलग तरह का है जिसका युद्ध के मैदान पर गहरा असर भी देखने को मिल रहा है.
पिछड़ती हुई रूसी सेना
सितंबर में खारकीव में, डोनबास के उत्तर पूर्वी इलाकों की ओर यूक्रेनी सेनाएं तेजी से, संयुत बल वाले ऑपरेशन क्या संकेतक बेहतर है करने में सफल रही. इस दौरान उन्होंने रूसी विरोधियों के मुकाबले शानदार प्रदर्शन किया था. वहीं इसी अप्रैल में दक्षिणी खेरसोन इलाके मे यूक्रेन ने एक तीसरा बड़ा मोर्चा खोला जिसके बाद रूसी सेना को पीछे हटना पड़ा था. अब पुतिन के बनवाए यूक्रेन क्रीमिया पुल पर विशाल विस्फोट हुआ है.
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी जानते हैं कि यह युद्ध लंबा चलेगा और वे उसी हिसाब से रणनीति पर काम भी कर रहे हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
बदलाव जारी है
रूसी सेना के खराब प्रदर्शन का रूस में भी असर दिख रहा है. पुतिन को सेना के प्रमुखों को बदलना पड़ रहा है. 2015 के बाद से यूक्रेन की सेना ने भी खुद में बहुत बदलाव किए हैं. भ्रष्टाचार पर लगाम लगी है. यूक्रेन में रूस के प्रति समर्थन नहीं रहा. पुराने रूसी समर्थक हाशिये पर चले गए हैं. लोगों को रूस की इरादा पूरे यूक्रेन पर कब्जा करने का दिख रहा है. बाद में सेना में प्रशासनिक बदलाव हुए है. नाटो से जुड़ने के बाद और ज्यादा बेहतरी आने की उम्मीद है.
बेशक यूक्रेन युद्ध अब किसी भी तरह से एक तरफा नहीं हैं. यूक्रेन ने नाटो में शामिल होने का फैसला कर लिया है और उसकी प्रक्रिया जल्द से जल्द शुरू करना चाहता है. वहीं रूस अकेला पड़ता जा रहा है. इस युद्ध की शुरुआत से ही माना जा रहा था कि यह लंबा चलेगा और सब जानते हैं कि पुतिन इसे बखूबी समझते हैं. ऐसे में किसी भी सेना का किसी मोर्चे से पीछे हटना रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है. जो भी इसका युद्ध का नुकसान दुनिया के बाकी देश झेल रहे हैं.
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Global Hunger Index 2022: भुखमरी में भारत की रैंकिंग काफी खराब, पाकिस्तान-श्रीलंका भी हमसे बेहतर
ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2022 के आंकड़ों में भारत छह पायदान नीचे खिसककर 121 देशों में से 107वें स्थान पर पहुंच गया है। पाकिस्तान और श्रीलंका भी हमसे बेहतर हैं। सिर्फ अफगानिस्तान से हम आगे हैं।
वैश्विक स्तर पर भारत के लिए अच्छी खबर नहीं है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2022 के आंकड़ों में भारत छह पायदान नीचे खिसककर 121 देशों में से 107वें स्थान पर पहुंच गया। वैश्विक सूची में भारत दक्षिण एशियाई देशों में से सिर्फ युद्धग्रस्त देश अफगानिस्तान से बेहतर है। रिपोर्ट में जानकर हैरानी इस बात की है कि आर्थिक तंगी और भुखमरी झेल रहे पाकिस्तान और श्रीलंका भारत से काफी बेहतर रैंकिंग में हैं। सिर्फ तालिबान शासित अफगानिस्तान देश ही इकलौता दक्षिण एशियाई देश है जो भारत से नीचे है। इससे पहले भी साल 2021 में भारत की रैकिंग काफी पीछे दिखाई गई थी। उस वक्त सरकार ने इन आंकड़ों को खारिज कर दिया था।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स की 2022 की सूची में भी भारत को प्रकाशकों ने काफी नीचे की श्रेणी रखा है। भारत 121 देशों की सूची में 107वें स्थान पर पहुंच गया है। इससे पहले साल 2021 में भारत को 101 रैंकिंग दी गई थी। पड़ोसी देशों की बात करें तो पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार को क्रमशः 99, 64, 84, 81 और 71वां स्थान दिया गया है। हैरत की बात है ये सभी देश भारत से ऊपर हैं। पांच से क्या संकेतक बेहतर है कम स्कोर के साथ 17 देशों को सामूहिक रूप से 1 और 17 के बीच स्थान दिया गया है।
भुखमरी और महंगाई से पाक की हालत पस्त
ग्लोबल इंडेक्स की सूची पर अभी हालांकि भारत की ओर से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। लेकिन, इसमें हैरत की बात यह है कि विनाशकारी बाढ़ के बाद भयंकर महंगाई और भुखमरी झेल रहे पाकिस्तान को भारत से बेहतर स्थिति में दिखाया गया है। पाकिस्तान में बाढ़ एक तिहाई हिस्से को डुबा चुकी थी। लाखों की संख्या में लोग बेघर हो गए थे। लाखों की संख्या में लोगों की मौत हुई। दाने-दाने के मोहताज पाकिस्तान ने दुनिया से राशन की मदद मांगी थी।
इमरजेंसी झेल चुका श्रीलंका
दूसरी ओर भारत का एक और पड़ोसी देश श्रीलंका की हालत दुनियाभर में किसी से छिपी नहीं है। श्रीलंका में राष्ट्रपति के खिलाफ लोग सड़क पर उतर गए थे। राष्ट्रपति भवन पर कब्जा करके लोगों ने पीएम आवास में आग लगा ली थी। इस वक्त को कुछ वक्त ही बिता है जब श्रीलंका में दूध और फल जैसी जरूरी चीजें काफी महंगी हो गई थी। पेट्रोल के लिए लोग कई दिनों तक कतारों में नजर आए। उस वक्त भारत ने अच्छा पड़ोसी धर्म निभाते हुए श्रीलंका को राशन की खेप पहुंचाई और मदद मुहैया कराई। ग्लोबल हंगर इंडेक्स की सूची में श्रीलंका को भारत से बेहतर दिखाना बड़े सवाल खड़े करता है।
क्या है रैकिंग का आधार
ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत से नीचे के देश हैं- जाम्बिया, अफगानिस्तान, तिमोर-लेस्ते, गिनी-बिसाऊ, सिएरा लियोन, लेसोथो, लाइबेरिया, नाइजर, हैती, चाड, डेम। कांगो के प्रतिनिधि, मेडागास्कर, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, यमन। रिपोर्ट में कहा गया है कि गिनी, मोजाम्बिक, युगांडा, जिम्बाब्वे, बुरुंडी, सोमालिया, दक्षिण सूडान और सीरिया सहित 15 देशों के लिए रैंक का निर्धारण नहीं किया जा सकता है।
विपक्षी का केंद्र पर हमला
दूसरी ओर विपक्ष के नेताओं ने केंद्र सरकार पर हमला करने के लिए रिपोर्ट का सहारा लिया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने कहा कि मोदी सरकार के आठ साल में 2014 के बाद से भारत का स्कोर खराब हुआ है। चिदंबरम ने एक ट्वीट में कहा, "हिंदुत्व, हिंदी थोपना और नफरत फैलाना भूख की दवा नहीं है।" चिदंबरम के बेटे और लोकसभा सदस्य कार्ति चिदंबरम ने ट्वीट किया, "भाजपा सरकार इसे खारिज कर देगी और अध्ययन करने वाले संगठन पर छापा मारेगी।"
आप ने भी साधा निशाना
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि भाजपा पांच ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनाने के बारे में भाषण देती है लेकिन 106 देश "दिन में दो भोजन उपलब्ध कराने में हमसे बेहतर हैं।" उन्होंने हिंदी में एक ट्वीट में कहा, "भारत हर बच्चे को अच्छी शिक्षा दिए बिना नंबर-1 नहीं बन सकता।"
पिछली रिपोर्ट खारिज कर चुका है केंद्र
केंद्र सरकार ने पिछले साल की ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि प्रकाशन एजेंसियों ने सही तरीके से अपना काम नहीं किया। केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय ने एक बयान में कहा था, “यह चौंकाने वाला है कि ग्लोबल हंगर रिपोर्ट 20201 ने कुपोषित आबादी के अनुपात पर एफएओ अनुमान के आधार पर भारत के रैंक को नीचे कर दिया है, जो जमीनी हकीकत और तथ्यों से काफी अलग है।"
मानव विकास सूचकांक में भारत से ज्यादा तरक्की कैसे कर रहा है पाकिस्तान?
HDI के मामले में अब भी भारत की स्थिति ठीक नहीं है. यह श्रीलंका, ईरान और चीन जैसे देशों से भी काफी पीछे है.
उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष भारत की रैंकिंग 130 थी. तीन दशकों से तेज आर्थिक विकास के कारण भारत की यह प्रगति हुई है, जिसके कारण गरीबी में कमी आई है. इसके साथ ही भारत की आबादी में जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच बेहतर होने की वजह से भी रैंकिंग में सुधार हुआ है.
क्या है मानव विकास सूचकांक?
मानव विकास सूचकांक या ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स (HDI) जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और आमदनी के सूचकांक से निकाला जाने वाला मानक है. इस तरीके को अर्थशास्त्री महबूब-उल-हक ने तैयार किया था. पहला मानव विकास सूचकांक साल 1990 में जारी किया गया था. तब से हर साल संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा इसे प्रकाशित करता है.
पाकिस्तान की रैंकिंग में 3 पायदान का सुधार
भारत की एचडीआई वैल्यू (0.640) दक्षिण एशिया के औसत 0.638 से थोड़ी अधिक है. भारत के पड़ोसी देशों बांग्लादेश और पाकिस्तान की HDI वैल्यू 0.608 और 0.562 है. बांग्लादेश की HDI रैकिंग जहां 134 है, वहीं पाकिस्तान की रैकिंग 147 है. संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक के मुताबिक, दुनिया के किसी अन्य भौगोलिक क्षेत्र में इतनी तेजी से मानव विकास प्रगति नहीं हुई है.
सर्वाधिक प्रगति दक्षिण एशिया में हुई है, जहां 1990-2018 के दौरान 46 फीसदी बढ़ोतरी हुई, जबकि पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में 43 फीसदी वृद्धि हुई है.
नॉर्वे, स्विटजरलैंड HDI रैकिंग में टॉप पर
संयुक्त राष्ट्र की HDI रैकिंग में नॉर्वे, स्विटजरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड और जर्मनी टॉप पर हैं जबकि नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीकी गणराज्य, दक्षिण सूडान, चाड और बुरुंडी काफी कम HDI वैल्यू के साथ फिसड्डी देशों में शामिल हैं.
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Global Hunger Index 2022:आखिर क्या है वैश्विक भूखमरी सूचकांक, क्यों पीछे रह जा रहा है भारत
ग्लोबल हंगर इंडेक्स या वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2022 (GHE) में भारत बीते साल की 101वीं पायदान से फिसल कर अब 107वें क्रम पर आ गया है. कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्टहंगरलाइफ द्वारा संयुक्त रूप से जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स में देशों को उनके यहां भुखमरी की गंभीरता के आधार पर सूचिबद्ध किया जाता है. इस साल सूची में यमन सबसे आखिरी पायदान यानी 121वें क्रम पर है, तो शीर्ष पर यूरोपीय देश (European Countries) क्रोएशिया, एस्टोनिया और मॉन्टेंगरो आए हैं. एशियाई देशों की बात करें तो चीन (China) और कुवैत जीएचआई में शीर्ष पर विराजमान हैं. गौरतलब है कि भारत (India) ने पिछले साल भी अपनी रैंकिंग नीचे देख ग्लोबल हंगर इंडेक्स को ही खारिज कर दिया था.
आखिर है क्या ग्लोबल हंगर इंडेक्स
2000 से लगभग हर साल वैश्विक भुखमरी सूचकांक जारी किया जा रहा है. 2022 में इसका 15वां संस्करण जारी किया गया है. कम स्कोर से किसी देश को उच्च रैंकिंग मिलती है और भुखमरी दूर करने के पैमाने पर उसका प्रदर्शन बेहतर माना जाता है. भुखमरी को मापने का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत विकास लक्ष्यों में से एक '2030 तक शून्य भुखमरी' का शिखर हासिल करना है. यही वजह है कि कुछ उच्च आय वाले देशों में ग्लोबल हंगर इंडेक्स के लिए जीएचआई स्कोर की गणना नहीं की जाती है. आम बोलचाल में भूख को भोजन की कमी के रूप में लिया जाता है, लेकिन औपचारिक अर्थ में इसकी गणना व्यक्ति द्वारा किए जा रहे कैलोरी सेवन के स्तर को माप कर की जाती है. हालांकि जीएचआई ने भूख की इस संकीर्ण परिभाषा तक ही खुद को सीमित नहीं रखा क्या संकेतक बेहतर है है. इसके बजाय वह चार प्रमुख पैमानों पर किसी देश के भुखमरी दूर करने में उसके प्रदर्शन को आंकता है. इनमें से एक है भोजन में माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी. इस तरह भुखमरी का एक समग्र खाका सामने आता है.
इन चार संकेतकों को आंकता है जीएचआई
- कुपोषण, जो अपर्याप्त भोजन की उपलब्धता को दर्शाता है. इसकी गणना कुपोषित आबादी की गणना से निकाली जाती है. इसमें भी उन लोगों की गणना खासतौर पर शामिल है, जिनकी कैलोरी सेवन की मात्रा अपर्याप्त है.
- चाइल्ड वेस्टिंग यानी भयंकर कुपोषण का पैमाना. इसे पांच साल से कम उम्र के ऐसे बच्चों की गणना करके निकाला जाता है, जिनका वजन उनकी लंबाई के सापेक्ष कम होता है.
- चाइल्ड स्टंटिंग का पैमाना लगभग स्थायी कुपोषण को दर्शाता है. इसकी गणना पांच साल से कम उम्र के बच्चों से की जाती है, जिनका वजन उनकी उम्र के लिहाज से कम होता है.
- बाल मृत्युदर वास्तव में अपर्याप्त पोषण और अस्वस्थ वातावरण को भी सामने लाती है. इसकी गणना पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्युदर से की जाती है. आंशिक तौर पर ये अपर्याप्त पोषण से होने वाली मौतों का मिश्रित आंकड़ा होता है.
प्रत्येक देश का डेटा का मानक 100 अंकों पर आधारित होता है और अंतिम गणना पहले और चौथे संकेतक के लिए 33.33 फीसदी और दूसरे और तीसरे संकेतक के लिए 16.66 फीसदी के स्कोर पर टिकी होती है. जिन देशों का स्कोर 9.9 के बराबर या इससे कम होता है, उन्हें भुखमरी के सूचकांक में 'कमतर' श्रेणी पर रखा जाता है. इसके विपरीत 20 से 34.9 स्कोर अर्जित करने वाले देशों को 'गंभीर' श्रेणी में रखा जाता है. 50 से ऊपर स्कोर वाले देशों को 'अत्यंत चिंताजनक' श्रेणी में रखा जाता है.
अन्य देशों की तुलना में भारत का स्कोर
भारत 29.1 स्कोर के साथ भुखमरी की 'गंभीर' श्रेणी वाले देशों में आता है. ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत अपने पड़ोसी देश नेपाल (81), पाकिस्तान (99), श्रीलंका (64) और बांग्लादेश (84) से भी निचले पायदान पर है. बीते कई सालों से भारत का जीएचआई स्कोर लगातार पेशानी पर बल डाल रहा है. 2000 में 38.8 स्कोर के साथ भारत में भुखमरी की 'अत्यंत चिंताजनक' स्थिति थी, तो 2014 में 28.2 के पैमाने पर रही. इसके बाद से तो भारत लगातार उच्च स्कोर ही प्राप्त करता आ रहा है. यद्यपि भारत चार संकेतकों पर लगातार कमतर प्रदर्शन कर रहा है, लेकिन कुपोषण और चाइल्ड वेस्टिंग संकेतकों पर उसका प्रदर्शन सुधरा है. भारत की आबादी में कुपोषण का स्तर 2014 के 14.8 की तुलना में 2022 में 16.3 रहा है, तो पांच साल से कम उम्र के बच्चों में 2014 की 15.1 की दर 2022 में 19.3 पह पहुंच गई है.
नॉर्वे सबसे बेहतर लोकतांत्रिक देश, भारत को मिली 46वीं रैंक
वर्ष 2006 से, इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस अपने लोकतंत्र सूचकांक के माध्यम से लगभग 165 स्वतंत्र राष्ट्रों और दो क्षेत्रों में दुनिया भर में लोकतंत्र की स्थिति को सामने ला रहा है. पिछले साल का लोकतंत्र सूचकांक 10 फरवरी, 2022 को प्रकाशित हुआ था. यह स्पष्ट रूप से बताई गई पांच श्रेणियों पर आधारित है - चुनावी प्रक्रिया और बहुलवाद, सरकार की कार्यप्रणाली, राजनीतिक भागीदारी, राजनीतिक संस्कृति और नागरिक स्वतंत्रता.
46वें स्थान के साथ भारत को ‘त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र’ में रखा गया है.
gnttv.com
- नई दिल्ली,
- 11 फरवरी 2022,
- (Updated 11 फरवरी 2022, 2:27 PM IST)
कई बातों का रखा जाता है ध्यान
पाकिस्तान को मिली 104 रैंक
एक देश सही मायनों में लोकतांत्रिक तभी होता है जब वहां लोकतंत्र के सभी मूल्यों का सही तरीके से पालन हो रहा है. हाल ही में जारी हुई इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस इंडेक्स में नॉर्वे को पहला स्थान दिया गया है. नॉर्वे को लोकतंत्र के लिए सर्वाधिक 9.75 अंक मिले हैं. इस सूची में लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर देशों को रैंकिंग दी गई है. बता दें भारत को इस लिस्ट में 6.91 अंक के साथ 46वां रैंक मिला है. सर्वेक्षण किए गए 167 क्षेत्रों में से, केवल 21 को पूर्ण लोकतंत्र माना गया, जो दुनिया की 6.4% आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि 53 देश ‘त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र’ श्रेणी में आते हैं.
कई बातों का रखा जाता है ध्यान
वर्ष 2006 से, इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस अपने लोकतंत्र सूचकांक के माध्यम से लगभग 165 स्वतंत्र राष्ट्रों और दो क्षेत्रों में दुनिया भर में लोकतंत्र की स्थिति को सामने ला रहा है. पिछले साल का लोकतंत्र सूचकांक 10 फरवरी, 2022 को प्रकाशित हुआ था. यह स्पष्ट रूप से बताई गई पांच श्रेणियों पर आधारित है - चुनावी प्रक्रिया और बहुलवाद, सरकार की कार्यप्रणाली, राजनीतिक भागीदारी, राजनीतिक संस्कृति और नागरिक स्वतंत्रता. इन श्रेणियों के अनुसार, सूची को आगे तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है जिसमें पूर्ण लोकतंत्र, त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र, हाइब्रिड शासन और सत्तावादी शासन वाले राष्ट्र शामिल हैं.
पाकिस्तान को मिली 104 रैंक
46वें स्थान के साथ भारत को ‘त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र’ में रखा गया है. अगर आप इसके बारे में सोचकर दुखी हैं, तो आपको यह भी पता होना चाहिए कि यूएसए को भी दोषपूर्ण लोकतंत्र वाले राष्ट्र के रूप में रखा गया है. पड़ोसी देश पाकिस्तान को 104 रैंक के साथ हाइब्रिड शासन में और नीचे रखा गया है. बता दें कि नॉर्वे के बाद दुसरे नंबर पर न्यूजीलैंड और तीसरे नंबर पर फिनलैंड है. वहीं इस रैंकिंग में नॉर्डिक देश स्वीडन चौथे और आइसलैंड पांचवें नंबर पर है.
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