वर्ष 2011 देश के शेयर बाजारों के लिए अच्छा साबित नहीं हुआ और इस दौरान निफ्टी सूचकांक में 25 फीसदी और मिड-कैप सूचकांक में करीब 35 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। डॉलर के संदर्भ में भी भारत सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला बाजार रहा और इसमें 37 फीसदी की गिरावट आई। वर्ष 2011 में जो भी कुछ गलत घट सकता था, वह सब हुआ। वर्ष की शुरुआत में निवेशकों ने उम्मीद की थी कि जीडीपी की विकास दर तकरीबन 9 फीसदी रहेगी लेकिन अब लगता है कि यह 7 फीसदी के आसपास ही रहेगी। मुद्रास्फीति को अल्पावधि की समस्या समझा गया था और माना गया था कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ब्याज दरों में थोड़े बहुत इजाफे से इसे काबू कर लेगा लेकिन इसके बजाय यह समस्या बढ़ती हुई दोहरे अंकों में पहुंच गई। आरबीआई को मजबूरन सख्त रुख अपनाना पड़ा। वर्ष की शुरुआत में निवेशकों ने सेंसेक्स की आय में 15 से 20 फीसदी वृद्घि का अनुमान लगाया था लेकिन बढिय़ा से बढिय़ा हालात में उन्हें बमुश्किल 5 से 8 फीसदी रिटर्न हासिल हो पाएगा। ऐसा इसलिए ंकि आय में कमी का क्रम लगातार जारी है। कई निवेशकों ने अपने आंतरिक रिटर्न के आकलन में रुपये के मूल्य में इजाफा होने का अनुमान लगाया था लेकिन रुपये के मूल्य में 18 फीसदी की गिरावट आई। इसके साथ ही भारत में किसी भी परिसंपत्ति से आय बहाली की सारी उम्मीदें टूट गईं। लेकिन अब तक वर्ष 2011 का सबसे निराश करने वाला पहलू था निवेशकों और कारोबारियों के आत्मविश्वास में आई गिरावट। नीतिगत पंगुता की भावना काफी मजबूती से घर कर गई और लंबी अवधि के अनुभवी तेजडिय़ों ने अपने ही निवेश सिद्घांतों पर सवाल उठाना शुरू कर दिया। यह माना जाने लगा कि 9 फीसदी की विकास दर कोई अकाट्य सत्य नहीं है और निवेशकों को अधिकांश नीतिगत फैसलों के जनवादी होने से चिंता होने लगी। उन्होंने खुले तौर पर यह सवाल उठाना शुरू कर दिया कि आखिर देश जा कहां रहा है?
इन तमाम बातों के बीच वर्ष 2012 की बात करते हैं। क्या तेज सुधार के साथ भारत वैश्विक निवेशकों की नजर में चढऩे में फिर कामयाब हो पाएगा? समूची धारणा को ध्यान में रखते हुए भारत के बारे में तेजी का नजरिया अपनाना स्पष्ट रूप से लीक से हटकर उठाया गया कदम होगा। मैंने कई वर्षों से भारत को लेकर इतनी बुरी धारणा नहीं देखी।
उभरते बाजारों के सूचकांक एमएससीआई में भारत के प्रदर्शन में करीब 7 फीसदी की गिरावट आई है। निवेशकों से संबंधित अधिकांश सर्वेक्षणों ने यही दिखाया है कि भारत का प्रदर्शन कमतर रहेगा और निवेशकों में नए निवेश की इच्छा न के बराबर दिख रही है। नकद बाजार में कारोबार 7 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर रहा। शुरुआती सार्वजनिक निर्गम से आने वाली राशि 8 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर रही। शेयरों का प्रदर्शन अप्रत्याशित रूप से खराब रहा। इस वजह से खुदरा निवेशक सावधि जमा में पैसा जमाकर दोहरे अंकों में आय अर्जित कर रहे हैं।
मूल्यांकन की शर्तों पर देखें तो एक ओर जहां बाजार दीर्घावधि के औसत के मुकाबले सस्ते हुए हैं लेकिन हालात वर्ष 2009 की पहली तिमाही जैसे भी नहीं हैं। मिड-कैप और आर्थिक रूप से संवेदनशील शेयरों पर भी असर पड़ा है और अगर सामान्य आय के लिहाज से देखा जाए तो वे बेहद सस्ती दर पर उपलब्ध हैं। लेकिन रक्षात्मक उच्च गुणवत्ता वाला उपभोक्ता व्यापार क्षेत्र उच्चतम स्तर पर कारोबार कर रहा है। आय की बात करें तो मेरे खयाल से हम निचले चक्र के अंतिम दौर में हैं। निवेशकों को वर्ष 2012-13 में 8 से 10 फीसदी से अधिक आय की उम्मीद नहीं है। मुझे यकीन है कि यह लक्ष्य आसानी से हासिल हो जाएगा। ब्याज दरों में कमी की उम्मीद सभी को है लेकिन यह किस समय और कितनी होगी, यही बात अचरज में डाल सकती है।
इन तमाम बातों के बीच वर्ष 2012 में बाजार की तेजी और मंदी के बीच का असली अंतर सरकार पर निर्भर करता है। क्या वह निर्णय लेने में तेजी लाएगी? तेजडिय़ों का तर्क है कि भारत नीतिगत निष्क्रियता का सबसे बुरा दौर देख चुका है और सरकार आगामी विधानसभा चुनावों के बाद पेश किए जाने वाले बजट में अपने तरकश के तमाम तीर आजमाएगी। उनके मुताबिक सक्रियता के प्रमाण दिखने शुरू हो गए हैं। मसलन, एकल ब्रांड खुदरा में 100 फीसदी विदेशी निवेश, राष्ट्रीय विनिर्माण नीति, पर्यावरण का मुद्दा, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की गतिविधियां आदि। चूंकि उम्मीदें एकदम निचले स्तर पर पहुंच चुकी हैं इसलिए सरकार चकित कर सकती है। आरबीआई द्वारा दरों में कटौती से इतर सरकार नियामक और नीतिगत गतिरोध दूर करके निवेश का दौर शुरू कर सकती है। आत्मविश्वास में होने वाला किसी भी तरह का इजाफा निवेश के लिए सकारात्मक होगा। इस बीच आरबीआई की ओर से दरों में कटौती और कंपनियों द्वारा पुनर्पूंजीकरण देखने को मिल सकता है। इससे 2012-13 की दूसरी छमाही में आय और जीडीपी दोनों में इजाफा होगा और देश विकास पथ पर वापसी करता नजर आएगा। तेजडिय़ों का तर्क है कि अगर सरकार वर्ष 2014 में दोबारा चुनाव जीतना चाहती है तो उसे सुधार के कदम उठाने ही होंगे। दिल्ली में कांग्रेस की स्थिति मजबूत करने को लेकर उत्तर प्रदेश चुनाव निर्णायक साबित हो सकते हैं।
मंदडिय़ों का मानना है कि मौजूदा स्थिति बरकरार रहेगी और आंतरिक तथा गठबंधन की समस्याओं के चलते सरकार बहुत कुछ नया नहीं कर पाएगी।चुनावी जीत हासिल करने की व्यग्रता में उसके हर कदम में लोकलुभावना योजनाएं ही सबसे ऊपर रहेंगी। उनके मुताबिक हम 6 और 7 फीसदी के बीच की विकास दर के घेरे में रहेंगे। इस दौरान निवेशकों और कारोबारियों के विश्वास में कोई इजाफा नहीं होगा। हम चालू खाते और राजकोषीय दोनों तरह के घाटे के बीच हैं और इससे असंतुलन और बढ़ेगा। बिजली, कोयला, रेल और बैंकिंग क्षेत्र में संकट की स्थिति पैदा होगी। निवेशक वर्ष 2014 तक बाजार से दूरी बनाए रहेंगे। यहां तक कि आरबीआई द्वारा दरों में कटौती का भी कोई खास फायदा नहीं होगा क्योंकि नीतिगत अवरोध निवेश पर असर डालना जारी रखेंगे।
तेजडि़ओं का दांव बेहतर प्रशासन और नीतिगत सुधार पर निर्भर है। यह मानना होगा कि अभी यह आशावाद प्रमाणों पर कम और उम्मीद पर अधिक केंद्रित है। लेकिन बात यह है क्या हम अल्पावधि के लोक लुभावन कदमों को अपने दीर्घावधि के भविष्य पर हावी होने देंगे? क्या हमने बिहार और गुजरात चुनाव के सबक शेयर बाजार की धारणा में सुधार भुला दिए कि केवल जनप्रिय कदम नहीं बल्कि बेहतर प्रशासन की बदौलत भी चुनाव जीते जा सकते हैं।
हम बाजार के बेहद दिलचस्प दौर में हैं। बाजार की धारणा और निवेशकों की भागीदारी बेहद कम है, मूल्यांकन भी 10 फीसदी के भीतर है। मौद्रिक और आय के चक्र मुनासिब हैं और नीतिगत उम्मीदें न के बराबर हैं। क्या सरकार कुछ ऐसा करेगी जिससे निवेशकों का उत्साह जागे?
Share Market Updates : शेयर बाजार के निवेशकों के लिए अच्छी खबर, घट गई विदेशी निवेशकों की बिकवाली, जानिए क्या कह रहे एक्सपर्ट्स
भारतीय बाजार से अब कम पैसा निकाल रहे विदेशी निवेशक
नई दिल्ली : भारतीय शेयर बाजारों (Share Market) से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की निकासी का सिलसिला जुलाई में भी जारी है। हालांकि, अब एफपीआई की बिकवाली की रफ्तार कुछ धीमी पड़ी है। डॉलर में मजबूती और अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी के बीच एफपीआई ने जुलाई में 4,000 करोड़ रुपये से अधिक के शेयर बेचे हैं। ट्रेडस्मार्ट के चेयरमैन विजय सिंघानिया ने कहा, ‘‘कच्चे तेल के दाम नीचे आने के बीच महंगाई घटने की उम्मीद के चलते बाजार धारणा में सुधार हुआ है। रिजर्व बैंक के रुपये की गिरावट को थामने के प्रयास से भी धारणा बेहतर हुई है।’’ पिछले लगातार नौ महीने से एफपीआई बिकवाल बने हुए हैं।
एफपीआई के रुख में नहीं है बड़ा बदलाव
मॉर्निंगस्टार इंडिया (Morningstar India) के एसोसिएट निदेशक-प्रबंधक शोध हिमांशु श्रीवास्तव का हालांकि मानना है कि एफपीआई की शुद्ध निकासी कम रहने का मतलब रुख में कोई बड़ा बदलाव नहीं है। उन्होंने कहा कि जिन कारणों से एफपीआई निकासी कर रहे थे, उनमें कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं आया है।
महंगाई के कम होने पर बढ़ेगा निवेश
यस सिक्योरिटीज के प्रमुख विश्लेषक-अंतरराष्ट्रीय शेयर हितेश जैन ने कहा कि मुद्रास्फीति के ऊंचे स्तर से नीचे आने का स्पष्ट संकेत मिलने के बाद एफपीआई का प्रवाह फिर शुरू होगा। उन्होंने कहा कि यदि ऊंची मुद्रास्फीति को लेकर चीजें दुरुस्त होती हैं, तो ऐसा संभव है कि केंद्रीय बैंक ब्याज दरों के मोर्चे पर नरमी बरतें। इससे एक बार फिर जोखिम वाली परिसंपत्तियों में निवेश बढ़ेगा।
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6 जुलाई को एफपीआई ने की 2,100 करोड़ की लिवाली
डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, एक से आठ जुलाई के दौरान एफपीआई ने भारतीय शेयर बाजारों से शुद्ध रूप से 4,096 करोड़ रुपये की निकासी की है। हालांकि, पिछले कई सप्ताह में छह जुलाई को पहली बार ऐसा मौका आया, जब एफपीआई द्वारा 2,100 करोड़ रुपये की लिवाली की गई। जून में एफपीआई ने 50,203 करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे। यह मार्च, 2020 के बाद सबसे ऊंचा स्तर है। उस समय एफपीआई की निकासी 61,973 करोड़ रुपये रही थी।
इस साल में एफपीआई निकाल चुके हैं 2.21 लाख करोड़
इस साल एफपीआई भारतीय शेयरों से 2.21 लाख करोड़ रुपये निकाल चुके हैं। इससे पहले 2008 के पूरे साल में उन्होंने 52,987 करोड़ रुपये की निकासी की थी। एफपीआई की निकासी की वजह से रुपया भी कमजोर हुआ है। हाल में रुपया 79 प्रति डॉलर के स्तर को पार कर गया।
मार्च के दबाव के बाद बाजार की धारणा में सुधार
भले ही चढऩे वाले और गिरने वाले शेयरों का अनुपात (एडवांस-डिक्लाइन रेश्यो) कुछ भी हो, लेकिन बाजार धारणा में सुधार दिखा है। बाजार धारणा के लिए यह प्रमुख मापक मार्च के 0.7 गुना से सुधरकर इस महीने अब तक लगभग 2 गुना पर पहुंच गया है। इस मापक में तेजी से यह संकेत मिलता है कि वर्ष की सबसे बड़ी गिरावट के बाद से सभी तरह के शेयरों में खरीदारी का रुझान दिख रहा है। वैश्विक रूप से जोखिम वाली परिसंपत्तियों के लिए निवेशकों शेयर बाजार की धारणा में सुधार की भूख बढ़ी है और केंद्रीय बैंकों द्वारा अरबों डॉलर के राहत पैकेजों से भी धारणा में सुधार आया है। इसके अलावा, प्रमुख क्षेत्रों में कोरोना के नए मामलों की रफ्तार धीमी पडऩे से भी रुझान सकारात्मक हुआ है।
सेंसेक्स अब अपने 23 मार्च के 25,981 के निचले स्तर से 21.8 प्रतिशत मजबूत हो चुका है। बीएसई-500 सूचकांक ने समान अवधि के दौरान 22.5 प्रतिशत की तेजी के शेयर बाजार की धारणा में सुधार साथ शानदार प्रदर्शन किया है।
शेयर बाजार पर विदेशी निवेशकों का भरोसा बरकरार, खरीद डाले 30,385 करोड़ रुपए के शेयर
उन्होंने कहा कि वैश्विक मोर्चे पर बात की जाए, तो अमेरिका में महंगाई अनुमान से कम बढ़ी है, जिससे यह संभावना बनी है कि फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में आक्रामक तरीके से बढ़ोतरी नहीं करेगा. इससे धारणा में सुधार हुआ है और भारतीय बाजार में FPI का निवेश बढ़ा है.
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) का भारतीय शेयर बाजारों में आक्रामक खरीदारी का सिलसिला जारी है. नवंबर में अबतक उन्होंने शेयरों में 30,385 करोड़ रुपए का निवेश किया है. भारतीय रुपए के स्थिर होने और दुनिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में घरेलू अर्थव्यवस्था मजबूत होने की वजह से विदेशी निवेशक एक बार फिर भारत पर दांव लगा रहे हैं.
FPI का रुख बहुत आक्रामक नहीं रहेगा
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट वी के विजयकुमार ने कहा कि आगे चलकर FPI का रुख बहुत आक्रामक नहीं रहेगा, क्योंकि हाई वैल्युएशन की वजह से वे अधिक खरीदारी से बचेंगे. उन्होंने कहा कि इस समय चीन, दक्षिण कोरिया और ताइवान के बाजारों में वैल्युएशन काफी आकर्षक है. साथ ही FPI का पैसा उन बाजारों की ओर जा सकता है.
डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, एक से 18 नवंबर के दौरान FPI ने शेयरों में शुद्ध रूप से 30,385 करोड़ रुपए डाले हैं. इससे पहले पिछले महीने यानी अक्टूबर में उन्होंने भारतीय बाजारों से शुद्ध रूप से आठ करोड़ रुपए निकाले थे. सितंबर में उन्होंने 7,624 करोड़ रुपये की बिकवाली की थी. सितंबर से पहले अगस्त में FPI ने 51,200 करोड़ रुपए की खरीदारी की थी. वहीं जुलाई में वे 5,000 करोड़ रुपए के खरीदारी रहे थे. इससे पहले पिछले साल अक्टूबर से लगातार नौ माह तक FPI बिकवाली बने रहे थे.
अन्य के मुकाबले भारत की स्थिति बेहतर
मॉर्निंगस्टार इंडिया के एसोसिएट निदेशक-प्रबंधक शोध हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा कि FPI के हालिया निवेश की वजह भारतीय शेयर बाजारों में तेजी, इकोनॉमी में स्थिरता और अन्य करेंसीज की तुलना में रुपए की स्थिति बेहतर रहना है.
उन्होंने कहा कि वैश्विक मोर्चे पर बात की जाए, तो अमेरिका में महंगाई अनुमान से कम बढ़ी है, जिससे यह संभावना बनी है कि फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में आक्रामक तरीके से बढ़ोतरी नहीं करेगा. इससे धारणा में सुधार हुआ है और भारतीय बाजार में FPI का निवेश बढ़ा है.
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हालांकि, समीक्षाधीन अवधि में FPI ने डेट या बॉन्ड बाजार से 422 करोड़ रुपए निकाले हैं. इस महीने में भारत के अलावा फिलिपीन, दक्षिण कोरिया, ताइवान और थाइलैंड के बाजारों में भी FPI का फ्लो पॉजिटिव रहा है.
शेयर बाजार में गिरावट रोकने के लिए आर्थिक सुधार को गति देना जरूरी
शेयर बाजार में मुनाफारूपी बेचवाली का दौर शुरू हुआ है। औद्योगिक उत्पादन में आई गिरावट ने बेचवाली की धारणा को और मजबूत कर दिया है। इस सप्ताह सूचकांक 4 फीसद टूटा है। विदेशी निवेशकों व म्युच्युअल फंड वालों ने बेचवाली की है।
इंदौर। शेयर बाजार में मुनाफारूपी बेचवाली का दौर शुरू हुआ है। औद्योगिक उत्पादन में आई गिरावट ने बेचवाली की धारणा को और मजबूत कर दिया है। इस सप्ताह सूचकांक 4 फीसद टूटा है। विदेशी निवेशकों व म्युच्युअल फंड वालों ने बेचवाली की है। बाजार की गिरावट रोकने के लिए आíथक सुधार की गति को बढ़ाना होगा। शेयर बाजार आखिर गोता खा गया।
तीस हजारी पहुंचने के पहले उसकी राह में कई रोड़े खड़े हो गए हैं। हालांकि महंगाई दर कम हुई है, किंतु औद्योगिक उत्पादन दर में बड़ी गिरावट ने शेयर बाजार के निवेशकों को दिन में तारे दिखा दिए। रुपया कमजोर हो रहा है, जबकि इसे मजबूत होना चाहिए। कच्चे तेल के भाव में लगातार आ रही गिरावट से बजट घाटा कम होगा व वित्तमंत्री की बड़ी परेशानी बिना कुछ करे दूर हो रही है। किंतु विश्व स्तर पर चल रहा पेट्रोलियम युद्ध से विश्व की अर्थव्यस्था कुचक्र में फंस जाएगी, तब क्या होगा?
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