बीएसई में बदलाव की जरूरत

लेकिन पिछले तीन महीनों के दौरान स्टॉक एक्सचेंज के कई अधिकारियों के इस्तीफोंसे यह गाड़ी ट्रेडिंग अकाउंट क्या होता है एक बार फिर से पटरी से उतर गई है। दो महीने पहले ही बीएसई के गैर कार्यकारी अध्यक्ष शेखर दत्ता और शेयरधारक निदेशक जमशेद गोदरेज ने बोर्ड से इस्तीफा दिया था।

अब पिछले हफ्ते इस 133 साल पुराने एक्सचेंज के सीईओ और प्रबंध निदेशक रजनीकांत पटेल ने भी अपने इस्तीफे के कागजात सौंप दिए हैं। भले ही इस्तीफे ट्रेडिंग अकाउंट क्या होता है के पीछे पटेल व्यक्तिगत वजहों का हवाला दे रहे हों पर बाजार में यह चर्चा जोरों पर है कि बीएसई के प्रबंधन में दलालों का हस्तक्षेप बढ़ने से दुखी होकर उन्होंने अपना इस्तीफा सौंपा है।

एशिया का यह सबसे पुराना शेयर बाजार जितने समय तक दलालों की गिरफ्त में रहा है, शायद ही किसी दूसरे देश का शेयर बाजार रहा होगा। यहां यह भी ध्यान रखना चाहिए कि चाहे वह 1990 के दशक के दौरान कारोबार का कंप्यूटरीकरण किया जाना हो या डिम्युचुअलाइजेशन या फिर हाल के दिनों में इसका निगमीकरण, सब कुछ नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के साथ प्रतिस्पर्धा के कारण किया गया है।

वर्ष 1999 और 2001 में दो बार सेबी को निगरानी और ट्रेडिंग अकाउंट क्या होता है ट्रेडिंग अकाउंट क्या होता है जांच के मुद्दे को लेकर बीएसई में दखल देना पड़ा था। बीएसई में कारोबार की शुरुआत से लेकर अब तक इसके कार्यकारी निदेशक का अपने सदस्य निदेशकों से झगड़ा चलता ही रहा है। अगर 1993 से अब तक के प्रशासन पर नजर डालें तो एम आर माया ही एकमात्र कार्यकारी निदेशक हैं जिन्होंने बीएसई में पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है।

वहीं एनएसई में हालात इसके ठीक उलट ट्रेडिंग अकाउंट क्या होता है ट्रेडिंग अकाउंट क्या होता है हैं। वर्ष 1994 में जब से यहां कारोबार की शुरुआत हुई है तब से ही यह साल दर साल और ट्रेडिंग अकाउंट क्या होता है मजबूत होता गया है। कारोबार ट्रेडिंग अकाउंट क्या होता है शुरू होने के एक साल के भीतर ही 1995 में यह देश का सबसे बड़ा शेयर बाजार बन गया था। बीते शुक्रवार के आंकड़ों के अनुसार एनएसई का कैपिटल मार्केट टर्नओवर 12,533 करोड़ रुपये था जो बीएसई के 5,432 करोड़ रुपये की तुलना में दोगुना है।

अगर डेरिवेटिव सेगमेंट पर नजर डालें तो भी बीएसई का कारोबार जहां महज 17 करोड़ रुपये का था वहीं एनएसई में फ्यूचर ऐंड ऑप्शन का कारोबार 47,120 करोड़ रुपये था। जहां क्रिसिल के साथ गठजोड़ के जरिए एनएसई के सूचकांक में भारत के साथ साथ सिंगापुर में भी कारोबार होता है, वहीं बीएसई के सेंसेक्स का इस्तेमाल महज बाजार की गहमागहमी का अंदाजा लगाने के लिए किया जाता है।

एनएसई के आगे होने की एक वजह यह भी ट्रेडिंग अकाउंट क्या होता है है कि इसके ट्रेडिंग सदस्य न तो इसके इस एक्सचेंज के शेयर धारक हैं और न ही प्रबंधन कार्यों में उनका कोई दखल है। ऐसा नहीं है कि बीएसई के आगे बढ़ने के कोई आसार ही नहीं हैं, बस जरूरत है कि एक साथ सही कदम उठाए जाएं।

बीएसई में सूचीबद्ध शेयरों की संख्या एनएसई से काफी अधिक है उसके बावजूद कम शेयरों के साथ ही एनएसई का बाजार पूंजीकरण बीएसई के लगभग बराबर ही है। भले ही बीएसई के लिए इक्विटी डेरिवेटिव क्षेत्र में अधिक संभावनाएं न हों पर कमोडिटीज, करेंसी फ्यूचर और छोटे और मझोले उद्यमों के एक्सचेंज के रुप में बीएसई के पास अब भी काफी मौके हैं।

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