भारत 'करेंसी मैनिपुलेटर्स' लिस्ट में
अमेरिका के ट्रेड फैसिलिटेशन एंड ट्रेड इनफोर्समेंट एक्ट, 2015 के अनुसार यदि कोई देश निम्नलिखित तीन में से दो मानदंडों को पूरा करता है, तो उसे वॉच लिस्ट/ मॉनिटरिंग लिस्ट/ निगरानी सूची में रखा जाता है :
1. यदि लगातार 12 महीनों से कोई देश अमेरिका के साथ अत्यधिक व्यापार अधिशेष की स्थिति में है।
2. यदि वह देश 12 महीनों की अवधि में सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के कम से कम 2 प्रतिशत के बराबर चालू खाता अधिशेष की स्थिति में है।
3. यदि विगत 12 महीनों (या कम से कम 6 महीनों में) में किसी देश द्वारा उस देश की जी.डी.पी. के कम से कम 2% के बराबर की विदेशी मुद्रा खरीद लगातार की जा रही है।
Explainer: अमेरिका ने भारत को 'करेंसी मैनिपुलेटर' की लिस्ट में डाल दिया है, जानें- क्या होगा इसका असर
अमेरिका ने तीसरी बार भारत को इस सूची में रखा है. इसके पहले अक्टूबर 2018 तक भारत अमेरिका की ऐसी करेंसी भारत करेंसी मैनिपुलेटर्स लिस्ट में निगरानी सूची में था, लेकिन मई 2019 में आयी नयी सूची में भारत को इस सूची से हटा दिया गया था.
दिनेश अग्रहरि
- नई दिल्ली ,
- 18 दिसंबर 2020,
- (अपडेटेड 18 दिसंबर 2020, 1:33 PM IST)
- अमेरिका ने भारत के प्रति दिखायी है सख्ती
- भारत पर लगाया करेंसी मैनिपुलेशन का आरोप
- रिजर्व बैंक की डॉलर खरीद पर US की टेढ़ी नजर
अमेरिका ने भारत के प्रति सख्त रुख दिखाते हुए इसे भी चीन, ताइवान जैसे दस देशों के साथ 'करेंसी मैनिपुलेटर्स' यानी मुद्रा में हेरफेर करने वाले देशों की 'निगरानी सूची' में डाल दिया है. इसका भारत पर क्या होगा असर और इसका क्या मतलब है? आइए जानते हैं.
अमेरिका ने तीसरी बार भारत को इस सूची में रखा है. इसके पहले अक्टूबर 2018 तक भारत अमेरिका की ऐसी करेंसी निगरानी सूची में था, लेकिन मई 2019 में आयी नयी सूची में भारत को इस सूची से हटा दिया गया था.
इसका क्या मतलब है
अमेरिका ऐसे देश को इस श्रेणी में रखता है, जो उसके मुताबिक करेंसी का अनुचित दस्तूर अपनाता है, डॉलर के मुकाबले अपनी करेंसी को जानबूझकर डीवैल्यूएट यानी अवमूल्यित करता है. कथित रूप से ऐसा देश मुद्रा में कृत्रिम हेरफेर कर अपने कारोबार के लिए अनुचित फायदा उठाता है.
कैसे हो सकता है फायदा
असल में यदि कोई देश अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर दे तो उसके देश के निर्यात की लागत कम हो जाती है, सस्ता होने से निर्यात की मात्रा बढ़ जाती है और किसी देश के भारत करेंसी मैनिपुलेटर्स लिस्ट में साथ उसके व्यापारिक संतुलन में बदलाव आ जाता है.
अमेरिका कैसे तय करता है कि किसी देश ने मैनिपुलेशन किया है
अमेरिका ने इसके लिए तीन तरह के पैमाने तय किये हैं:
1. किसी देश का अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार में एक साल के दौरान कम से कम 20 अरब डॉलर का ट्रेड सरप्लस हो जाए यानी अमेरिका में उस देश का निर्यात उसके अमेरिका से आयात के मुकाबले ज्यादा हो.
2. एक साल के दौरान किसी देश का करेंट एकाउंट सरप्लस उसके सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम 2 फीसदी तक हो जाए.
3. किसी देश के द्वारा एक साल के भीतर विदेशी मुद्रा की खरीद उसके जीडीपी का कम से कम 2 फीसदी हो जाए.
क्या होगा इसका असर
इस सूची में शामिल होने से तत्काल भारत को कोई बड़ा नुकसान नहीं होने वाला है, लेकिन इससे वैश्विक बाजार में भारत की छवि को थोड़ा नुकसान हो सकता है. इसके दबाव में हो सकता है कि अब रिजर्व बैंक डॉलर की खरीद कम कर दे. डॉलर की खरीद कम हुई तो रुपये में और मजबूती आ सकती है. इससे हमारा निर्यात महंगा हो सकता है और कई देशों के साथ व्यापार घाटा बढ़ सकता है.
रिजर्व बैंक की डॉलर खरीद पर सवाल
अमेरिका ने खासकर इस बात पर सवाल उठाये हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक डॉलर की जमकर खरीद कर रहा है. रिजर्व बैंक द्वारा डॉलर की ज्यादा खरीद करने से हमारे देश के विदेशी मुद्रा भंडार में इस वित्त वर्ष में ही करीब 100 अरब डॉलर की बढ़त हुई है. देश का विदेशी मुद्रा भंडार इस साल अप्रैल के 475.6 अरब डॉलर के मुकाबले अब 579.34 अरब डॉलर तक पहुंच गया है.
अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार में पिछले कई साल से पलड़ा भारत के पक्ष में झुका हुआ है. जून 2020 तक की चार तिमाहियों में अमेरिका के साथ भारत का ट्रेड सरप्लस करीब 22 अरब डॉलर तक पहुंच गया.
क्या है भारत का तर्क
भारत का तर्क यह है कि दुनिया के केंद्रीय बैंकों द्वारा जिस तरह से पूंजी का प्रवाह किया जा रहा है उसकी वजह से मुद्रा के प्रबंधन के लिए उसके लिए ऐसा हस्तक्षेप जरूरी था. रिजर्व भारत करेंसी मैनिपुलेटर्स लिस्ट में बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने पिछले साल कहा था कि अमेरिका को किसी देश को 'मैनिपुलेटर' का तमगा देने की जगह उसके मुद्रा भंडार की जरूरत के बारे में बेहतर समझ रखनी चाहिए.
उन्होंने तो यहां तक संकेत दे दिया था कि अमेरिका के ऐसे कदमों से भारत रिजर्व करेंसी के रूप में डॉलर को अपनाने से दूर हो सकता है. जानकारों का मानना है कि अब रिजर्व बैंक को डॉलर की खरीद से वास्तव में बचना चाहिए क्योंकि 500 अरब डॉलर का मुद्रा भंडार ही हमारी एक साल की आयात जरूरतों के लिए काफी है.
भारत को ‘करेंसी मैनिपुलेटर्स’ की लिस्ट में डाल अमेरिका ने दिया बड़ा झटका, जानिए क्या है इसका मतलब
'करेंसी मैनिपुलेटर्स' की सूची (Currency Manipulator List) में शामिल होना भारत के लिए अच्छी खबर कतई नहीं है. अमेरिका ने 2018 में भी भारत को लेकर ये कदम उठाया है.
US Adds India to Currency Manipulator Monitoring List: अमेरिका ने पहले की तरह एक बार फिर भारत को तगड़ा झटका दिया है. उसने भारत को ‘करेंसी मैनिपुलेटर्स’ (मुद्रा के साथ छेड़छाड़ करने वाले देश) की निगरानी सूची में डाल दिया है (Currency Manipulator Watchlist Meaning). इसपर भारत करेंसी मैनिपुलेटर्स लिस्ट में भारत ने मंगलवार को जवाब देते हुए कहा है कि इसका कोई भी तर्क समझ से परे है. भारत के वाणिज्य सचिव अनूप वाधवा ने कहा, ‘मुझे इसमें कोई आर्थिक तर्क समझ नहीं आता.’ उन्होंने बताया कि भारत का रिजर्व बैंक एक ऐसी पॉलिसी को अनुमति देता है, जिसके अंतर्गत मार्केट फोर्सेज के अनुरूप मुद्रा का संग्रह किया जाता है.
अमेरिका के वित्त मंत्रालय ने भारत सहित कुल 10 देशों को इस सूची में शामिल किया है. इनमें सिंगापुर, चीन, थाईलैंड, मैक्सिको, जापान, कोरिया, जर्मनी, इटली और मलेशिया तक शामिल हैं (US Treasury Currency Watchlist). मंत्रालय ने कहा है कि इन देशों में मुद्रा संग्रहण और इससे जुड़े भारत करेंसी मैनिपुलेटर्स लिस्ट में अन्य तरीकों पर ‘करीबी नजर’ रखी जाएगी. अधिकारी ने बताया कि भारत का अमेरिका के साथ ट्रेड सरप्लस (व्यापार अधिशेष) साल 2020-21 में करीब पांच अरब डॉलर तक बढ़ गया है. यहां ट्रेड सरप्लस का मतलब है, किसी देश का निर्यात उसके आयात से अधिक हो जाना.
भारत को क्या करने को कहा गया?
अमेरिका की इस रिपोर्ट में लिखा है कि वस्तुओं के मामले में साल 2020 में भारत का अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार अधिशेष 24 अरब डॉलर था. जिसमें सेवाओं का 8 अरब डॉलर का वित्तीय अधिशेष भी शामिल है. रिपोर्ट में भारत को सलाह देते हुए कहा है कि उसे (भारत) विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप को सीमित करना चाहिए. भारत को ऐसा अधिक रिजर्व जमा किए बिना करना चाहिए (US Currency Watchlist Meaning). गौरतलब है कि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है, जब अमेरिका ने भारत को लेकर ये कदम उठाया है. इससे पहले 2018 में भी भारत को सूची में डाला गया था लेकिन फिर 2019 में हटा दिया था.
सूची में शामिल होने का मतलब?
‘करेंसी मैनिपुलेटर्स’ की सूची में शामिल होना भारत के लिए अच्छी खबर कतई नहीं है. इसे लेकर अर्थशास्त्री कहते हैं कि अमेरिका के इस कदम से भारत को विदेशी मुद्रा बाजार में आक्रामक हस्तक्षेप करने में परेशानी आएगी. हालांकि अमेरिका के लिए ऐसा करना कोई नई बात भी नहीं है (What is Currency Manipulator List). वह समय-समय पर अलग-अलग देशों को सूची में डालता है. भारत के अलावा चीन को भी कई बार सूची में शामिल किया भारत करेंसी मैनिपुलेटर्स लिस्ट में गया है. अमेरिका का ऐसा मानना है कि वह सूची में उन देशों को ही डालता है, जो ‘मुद्रा के अनुचित व्यवहार’ को अपनाते हैं, ताकि डॉलर के मुकाबले उनकी खुद की मुद्रा का अवमूल्यन हो सके.
कोई देश ऐसा क्यों करेगा?
अब सवाल ये भी उठता है कि बेशक कोई देश अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करने की कोशिश करता हो, लेकिन वो ऐसा करता क्यों है? तो ऐसा कोई देश इसलिए करता है कि ताकि इसकी सहायता से कृत्रिम रूप से उसकी मुद्रा घट सके और वह अन्यों से अनुचित लाभ भी ले सके. मुद्रा का अवमूल्यन करने से फायदा ये होगा कि उस देश से निर्यात की लागत में कमी आ जाएगी और इससे फिर व्यापार घाटे में भी कृत्रिम तौर पर कमी देखी जा सकेगी.
किसी देश को कैसे शामिल किया जाता है?
किस देश को ‘करेंसी मैनिपुलेटर्स’ की सूची में शामिल करना है और किसे नहीं, इसके लिए विभिन्न पैरामीटर्स देखे जाते हैं. अमेरिका इसमें देखता है कि संबंधित देश में भारत करेंसी मैनिपुलेटर्स लिस्ट में एक वित्त वर्ष में व्यापार अधिशेष किस तरह और कितना बढ़ा है. इसके साथ ही देश की कुल जीडीपी और उसमें से की गई मुद्रा भंडार की खरीब को भी देखा जाता है (Currency Manipulator Watch List). भारत को इस सूची में शामिल करने के पीछे का कारण केंद्रीय रिजर्व बैंक द्वारा डॉलर की खरीद और व्यापार अधिशेष में होने वाली वृद्धि को बताया गया है.
क्या कहते हैं आंकड़े?
रिपोर्ट्स के अनुसार, हाल ही में खबर आई थी कि भारत का अमेरिका संग व्यापार अधिशेष 20 अरब डॉलर से अधिक हो गया है. इसके अलावा केंद्रीय बैंक के आंकड़ों में भी कहा गया था कि भारत ने 2019 के अंत तक विदेशी मुद्रा खरीदने के मामले में तेजी दिखाई थी (Currency Manipulator Country). आंकड़ों के अनुसार, साल 2020 के जून महीने तक भारत ने 64 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा की खरीद की थी. यह संख्या जीडीपी का 2.4 फीसदी है. अगर किसी देश को ‘करेंसी मैनिपुलेटर’ माना जाता है, तो उसपर तुरंत तो कोई जुर्माना नहीं लगाया जाता. लेकिन इस सूची में शामिल होने के बाद उस देश की वैश्विक वित्त बाजार में साख जरूर कम हो जाती है.
अमेरिका की निगाह में भारत 'करेंसी मैनिपुलेटर'. जानें क्या है इसका मतलब
नए राष्ट्रपति जो बाइडन (Joe Biden) के नेतृत्व में अमेरिका ने पहले की तरह एक बार फिर भारत को तगड़ा झटका दिया है. उसने भारत (India) को 'करेंसी मैनिपुलेटर्स' (मुद्रा के साथ छेड़छाड़ करने वाले देश) की निगरानी सूची में डाल दिया है. गौरतलब है कि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है, जब अमेरिका ने भारत को लेकर ये कदम उठाया है. इससे पहले 2018 में भी भारत को सूची में डाला गया था लेकिन फिर 2019 में हटा दिया था. अमेरिका के वित्त मंत्रालय ने भारत सहित कुल 10 देशों को इस सूची में शामिल किया भारत करेंसी मैनिपुलेटर्स लिस्ट में है. इनमें सिंगापुर, चीन, थाईलैंड, मैक्सिको, जापान, कोरिया, जर्मनी, इटली और मलेशिया तक शामिल हैं. मंत्रालय ने कहा है कि इन देशों में मुद्रा संग्रहण और इससे जुड़े अन्य तरीकों पर करीबी नजर रखी जाएगी. अधिकारी ने बताया कि भारत का अमेरिका के साथ ट्रेड सरप्लस (Trade Surplus) साल 2020-21 में करीब पांच अरब डॉलर तक बढ़ गया है. यहां ट्रेड सरप्लस का मतलब है, किसी देश का निर्यात उसके आयात से अधिक हो जाना.
सूची में शामिल होने से क्या
'करेंसी मैनिपुलेटर्स' की सूची में शामिल होना भारत के लिए अच्छी खबर कतई नहीं है. इसे लेकर अर्थशास्त्री कहते हैं कि अमेरिका के इस कदम से भारत को विदेशी मुद्रा बाजार में आक्रामक हस्तक्षेप करने में परेशानी आएगी. हालांकि अमेरिका के लिए ऐसा करना कोई नई बात भी नहीं है. वह समय-समय पर अलग-अलग देशों को सूची में डालता है. भारत के अलावा चीन को भी कई बार सूची में शामिल किया गया है. अमेरिका का ऐसा मानना है कि वह सूची में उन देशों को ही डालता है, जो 'मुद्रा के अनुचित व्यवहार' को अपनाते हैं, ताकि डॉलर के मुकाबले उनकी खुद की मुद्रा का अवमूल्यन हो सके.
ऐसे हो सकता है फायदा
असल में यदि कोई देश अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर दे तो उसके देश के निर्यात की लागत कम हो जाती है, सस्ता होने से निर्यात की मात्रा बढ़ जाती है और किसी देश के साथ उसके व्यापारिक संतुलन में बदलाव आ जाता है.
समझें अवमूल्यन को
अर्थशास्त्र में अवमूल्यन का तात्पर्य अन्य मुद्राओं के संबंध में किसी एक मुद्रा के मूल्य में कमी करने से होता है. अवमूल्यन में किसी देश के द्वारा अन्य मुद्राओं या मुद्राओं के समूह के समतुल्य अपनी मुद्रा के मूल्य को कृत्रिम तरीके से कम कर दिया जाता है. उदाहरण के लिए यदि डॉलर की तुलना में रुपए का अवमूल्यन किया गया, तो आपको डॉलर खरीदने के लिए अत्यधिक रुपए खर्च करने पड़ेंगे. किसी देश के द्वारा अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करने से मुख्यतः 3 लाभ होते हैं.
- इससे आयात महंगे हो जाते हैं क्योंकि घरेलू मुद्रा के मूल्य में कमी से अब आयात पर घरेलू मुद्रा में ज्यादा भुगतान करना पड़ता है. इससे विदेशी वस्तुओं का आयात हतोत्साहित होता है जिससे घरेलू उद्योगों को संरक्षण मिलता है.
- इससे किसी देश के निर्यात अन्य देशों में सस्ते हो जाते हैं क्योंकि विदेशी आयातको को अब पहले की तुलना में कम भुगतान करना होता है. इससे किसी देश के निर्यात की मांग बढ़ती है जिससे घरेलू उद्योगों को बढ़ावा मिलता है.
- किसी भी देश के द्वारा अपनी मुद्रा के अवमूल्यन से उसका भुगतान संतुलन अनुकूल होता है क्योंकि इससे देश के भीतर जहां एक ओर आयातो में कमी आती है तो वहीं दूसरी ओर निर्यात में वृद्धि होती है.
क्या होगा असर
इस सूची में शामिल होने से तत्काल भारत को कोई बड़ा नुकसान नहीं होने वाला है, लेकिन इससे वैश्विक बाजार में भारत की छवि को थोड़ा नुकसान हो सकता है. इसके दबाव में हो सकता है कि अब रिजर्व बैंक डॉलर की खरीद कम कर दे. डॉलर की खरीद कम हुई तो रुपये में और मजबूती आ सकती है. इससे हमारा निर्यात महंगा हो सकता है और कई देशों के साथ व्यापार घाटा बढ़ सकता है.
अमेरिका कैसे तय करता है कि किसी देश ने मैनिपुलेशन किया है
अमेरिका ने इसके लिए तीन तरह के पैमाने तय किये हैं..
- किसी देश का अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार में एक साल के दौरान कम से कम 20 अरब डॉलर का ट्रेड सरप्लस हो जाए यानी अमेरिका में उस देश का निर्यात उसके अमेरिका से आयात के मुकाबले ज्यादा हो.
- एक साल के दौरान किसी देश का करेंट एकाउंट सरप्लस उसके सरप्लस उसके सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम 2 फीसदी तक हो जाए.
- किसी देश के द्वारा एक साल के भीतर विदेशी मुद्रा की खरीद उसके जीडीपी का कम से कम 2 फीसदी हो जाए.
क्या कहते हैं आंकड़े
हाल ही में खबर आई थी कि भारत का अमेरिका संग व्यापार अधिशेष 20 अरब डॉलर से अधिक हो गया है. इसके अलावा केंद्रीय बैंक के आंकड़ों में भी कहा गया था कि भारत ने 2019 के अंत तक विदेशी मुद्रा खरीदने के मामले में तेजी दिखाई थी. आंकड़ों के अनुसार साल 2020 के जून महीने तक भारत ने 64 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा की खरीद की थी. यह संख्या जीडीपी का 2.4 फीसदी है. अगर किसी देश को 'करेंसी मैनिपुलेटर' माना जाता है, तो उसपर तुरंत तो कोई जुर्माना नहीं लगाया जाता, लेकिन इस सूची में शामिल होने के बाद उस देश की वैश्विक वित्त बाजार में साख जरूर कम हो जाती है.
क्या है भारत का तर्क
भारत का तर्क यह है कि दुनिया के केंद्रीय बैंकों द्वारा जिस तरह से पूंजी का प्रवाह किया जा रहा है उसकी वजह से मुद्रा के प्रबंधन के लिए उसके लिए ऐसा हस्तक्षेप जरूरी था. रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने पिछले साल कहा था कि अमेरिका को किसी देश को 'मैनिपुलेटर' का तमगा देने की जगह उसके मुद्रा भंडार की जरूरत के बारे में बेहतर समझ रखनी चाहिए. उन्होंने तो यहां तक संकेत दे दिया था कि अमेरिका के ऐसे कदमों से भारत रिजर्व करेंसी के रूप में डॉलर को अपनाने से दूर हो सकता है. जानकारों का मानना है कि अब रिजर्व बैंक को डॉलर की खरीद से वास्तव में बचना चाहिए क्योंकि 500 अरब डॉलर का मुद्रा भंडार ही हमारी एक साल की आयात जरूरतों के लिए काफी है. इस साल भी इस पर भारत ने जवाब देते हुए कहा है कि इसका कोई भी तर्क समझ से परे है. भारत के वाणिज्य सचिव अनूप वाधवा ने कहा, 'मुझे इसमें कोई आर्थिक तर्क समझ नहीं आता.' उन्होंने बताया कि भारत का रिजर्व बैंक एक ऐसी पॉलिसी को अनुमति देता है, जिसके अंतर्गत मार्केट फोर्सेज के अनुरूप मुद्रा का संग्रह किया जाता है.
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