भारतीय जूट उद्योग
भारत में जूट का प्रथम कारखाना सन 1859 में स्कॉटलैंड के एक व्यापारी जार्ज ऑकलैंड ने बंगाल में श्रीरामपुर के निकट स्थापित किया और इन कारखानों की संख्या 1939 तक बढ़कर 105 हो गई। देश के विभाजन से यह उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ। जूट के 112 कारखानों में से 102 कारखाने ही भारत के हिस्से में आये।
भारतीय अर्थव्यवस्था में जूट उद्योग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। 19वीं शताब्दी तक यह उद्योग कुटी एवं लघु उद्योगों के रूप में विकसित था एवं विभाजन से पूर्व जूट उद्योग के मामले में भारत का एकाधिकार था। विशेष रूप से कच्चा जूट भारत से स्कॉटलैंड भेजा जाता था। जहाँ से टाट-बोरियाँ बनाकर फिर विश्व के विभिन्न देशों में भेजी जाती थीं, जोकि विदेशी मुद्रा का प्रमुख स्रोत थी। यह निर्यात व्यापार जूट उद्योग का जीवन रक्त था। दुनिया के प्रायः सभी देशों में जूट निर्मित उत्पादों की माँग हमेशा बनी रहती है। अतः आज भी भारत में जूट को ‘सोने का रेशा’ कहा जाता है।
प्रथम तथा द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान युद्ध दुनिया में सबसे सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी कौन है स्थलों पर खाद्य तथा आयुध सामग्री पहुँचाने के लिये जूट से निर्मित उत्पादों की माँग में हुई अप्रत्याशित वृद्धि से इस उद्योग की तेजी से प्रगति हुई। भारत में जूट का प्रथम कारखाना सन 1859 में स्कॉटलैंड के एक व्यापारी जार्ज ऑकलैंड ने बंगाल में श्रीरामपुर के निकट स्थापित किया और इन कारखानों की संख्या 1939 तक बढ़कर 105 हो गई। देश के विभाजन से यह उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ। जूट के 112 कारखानों में से 102 कारखाने भारत के हिस्से में आये। भारत में जूट उद्योग के विकास के लिये यह चुनौती भरा कार्य था। साथ ही 1949 में भारतीय दुनिया में सबसे सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी कौन है रुपये के अवमूल्यन के कारण भारतीय कारखानों के लिये पाकिस्तान का कच्चा जूट बहुत महँगा हो गया। पाकिस्तान ने इन बदलती हुई परिस्थितियों का भरपूर लाभ उठाया लेकिन भारत सरकार के प्रोत्साहन एवं प्रयासों के कारण शीघ्र ही इस समस्या का निदान कर लिया गया। पश्चिम बंगाल, असम, बिहार इत्यादि राज्यों के किसानों ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुये जूट के उत्पादन में अथक परिश्रम किया और वे अपने लक्ष्य में सफल रहे।
आज भारत में 9 लाख 70 हजार हेक्टेयर भूमि पर जूट का उत्पादन किया जा रहा है। जूट मिलों की संख्या 73 है। इनमें से 59 मिलें पश्चिम बंगाल में हैं। सार्वजनिक क्षेत्र में 5 इकाईयाँ कार्यरत हैं। प्रतिवर्ष लगभग 14 लाख टन जूट का उत्पादन किया जा रहा है। अनुकूल जलवायु के कारण 90 प्रतिशत जूट पश्चिम बंगाल, बिहार एवं असम राज्यों में उतपन्न होता है। पश्चिम बंगाल में नित्यवाही नदियों के कारण बहता हुआ साफ पानी उपलब्ध हो जाता है जिससे जूट को साफ, चमकीले एवं मजबूत रेशों में परिवर्तित किया जाता है। जूट उद्योग में 3 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिला हुआ है, तथा जूट उत्पादन से 40 लाख परिवार अपना जीविकोपार्जन करते हैं। वर्तमान में करघों की संख्या बढ़कर लगभग 40,500 हो गई है। विश्व के जूट उत्पाद का 40 प्रतिशत भारत एवं 50 प्रतिशत बांग्लादेश से उपलब्ध होता है।
नियोजित विकास
विभिन्न पँचवर्षीय योजनाओं में देश में जूट के उत्पादन में निरन्तर वृद्धि की प्रवृत्ति रही है। पहली योजना के अन्तिम वर्ष में भारत में जूट का उत्पादन 42 लाख गाँठे था, जो 1996-97 में बढ़कर एक करोड़ गाँठें हो गया। जूट का उत्पादन एवं जूट से निर्मित उत्पादों को तालिका-1 में दर्शाया गया हैै।
तालिका - 1
कच्चे जूट का उत्पादन (लाख गाँठें)
जूट निर्मित माल (लाख टन)
दुनिया में सबसे सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी कौन है
ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) देशों ने वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में एक वैकल्पिक तंत्र के तौर पर ब्रिक्स बैंक की रूपरेखा पर सहमति जताई है। ब्राजील के फोर्टालेजा में चल रहे ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन में इसके ढांचे पर मुहर लगी। 100 अरब डॉलर की शुरुआती पूंजी के साथ शुरू होने वाले इस विकास बैंक का मुख्यालय चीन के शांघाई में होगा। वहीं इसके प्रथम अध्यक्ष की भूमिका भारत को दी गई है, जबकि बोर्ड गवर्नर्स का चेयरमैन रूस होगा। बैंक का क्षेत्रीय कार्यालय दक्षिण अफ्रीका में खोला जाएगा। भारत ने आतंक के मसले पर भी जोरदार तरीके से अपनी बात रखी और कहा कि किसी भी तरह के आतंक को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
हालांकि इस सम्मेलन में आपसी सहयोग की कई बातों पर सहमति बनी लेकिन ब्रिक्स बैंक की स्थापना को इसमें सबसे बड़ी सफलता माना जा रहा है। भारत के लिहाज से एक बड़ी सफलता यह मानी जा रही है कि बैंक की स्थापना सदस्य देशों द्वारा बराबर पूंजी अंशदान के जरिये की जाएगी। इससे बैंक पर किसी एक देश विशेष के वर्चस्व की आशंका खत्म होगी। भारत शुरुआत से इसके लिए दबाव बना रहा था क्योंकि विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और एशियाई विकास बैंक जैसे संगठनों में अमेरिका और जापान जैसे देशों के दबदबे की अक्सर शिकायत की जाती है। बैठक में सदस्य देशों को विदेशी मुद्रा संकट में मदद के लिए प्रारंभ में 100 अरब डॉलर के आकार के एक आपात आरक्षित विदेशी विनिमय कोष' (सीआरए) के गठन पर भी समझौता समझौता हुआ। बैंक की शुरुआती अधिकृत पूंजी 100 अरब डॉलर होगी लेकिन आरंभ में पांचों सदस्य कुल 50 अरब डॉलर की पूंजी लगाएंगे। सम्मेलन में स्वीकार किए गए फोर्टालेजा घोषणा पत्र में नेताओं ने कहा, 'हम अपने वित्त मंत्रियों को निर्देश देते हैं कि वे इस बैंक के संचालन के तौर तरीकों पर काम करें।'
वैश्विक सुधारों पर जोर
सदस्य देशों ने वैश्विक संस्थाओं में अपेक्षित सुधार न होने को लेकर अपनी चिंता भी जाहिर की। घोषणापत्र में सदस्य देशों ने 2010 के आईएमएफ सुधारों को लागू न होने को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की। इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और वित्तीय संस्थानों में बड़े सुधारों की जरूरत बताई। अपने पहले बहुस्तरीय सम्मेलन में शिरकत कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वह आने वाले दिनों में नेताओं के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाने को लेकर आशावादी हैं। उन्होंने कहा कि ब्रिक्स अपने शिखर सम्मेलनों के दूसरे दौर में ऐसे समय प्रवेश किया है जब कि दुनिया के कई क्षेत्रों में अस्थिरता बढ़ रही है।
प्रधानमंत्री ने विश्व में शांति और स्थायित्व के माहौल के लिए सदस्य देशों के बीच सहयोग को नई ऊंचाईयों पर ले जाने की जरूरत पर जोर दिया। प्रधानमंत्री ने कहा, 'मेरा मानना है कि पहली बार ब्रिक्स जैसी किसी संस्था ने देशों के एक समूह को उनकी वर्तमान समृद्धि के बजाय उनकी भविष्य की संभावना के आधार पर साथ लाने की कोशिश की है। यह आगे की सोच है। ब्रिक्स को एक शांतिपूर्ण और स्थिर विश्व के लिए अवश्य ही एक एकीकृत, स्पष्ट आधार मुहैया करना चाहिए।' मोदी ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अंतरराष्टï्रीय वित्तीय संगठनों के साथ ही डब्ल्यूटीओ में भी सुधार होना चाहिए ताकि एक मजबूत वैश्विक व्यापार व्यवस्था के बारे में विकासशील दुनिया की आकांक्षाओं का भी ध्यान रखा जाए।
घोषणा पत्र में कहा गया है कि ब्रिक्स और अन्य उभरते बाजारों और विकासशील देशों के सामने बुनियादी ढांचागत विकास और स्वस्थ्य विकास की परियोजनाओं के लिए धन की की तंगी बनी हुई है। बिक्स बैंक के समझौते को ब्रिक्स के सदस्यों और अन्य उभरती विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण पहल बताया गया है। इसमें कहा गया है कि प्रस्तावित बैंक ठोस बैंकिंग सिद्धांतों पर आधारित होगा और ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग मजबूत करेगा और वैश्विक विकास में बहुपक्षीय एवं क्षेत्रीय वित्तीय संस्थाओं के प्रयासों में मदद करेगा।
घोषणापत्र में संक्षिप्त अवधि के भुगतान संतुलन के दबाव से निपटने के लिए विदेशी विनिमय की अदला बदली (करेंसी स्वैप) की व्यवस्था है। ब्रिक्स ने सदस्य देशों के निर्यात ऋण और गारंटी एजेंसियों के बीच सहयोग के संबंध में भी एक समझौता किया। इससे सदस्य देशों के बीच व्यापार संबंधी अवसर बढाने में मदद मिलेगी। ब्रिक्स के इस घोषणा पत्र में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कारोबार पर कर का मुद्दा भी शामिल हुआ।
दो साल में ब्रिक्स बैंक
ब्रिक्स बैंक दो साल में शुरू हो जाएगा। पश्चिम के प्रभुत्व वाली अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को नया आकार देने की दिशा में इसे बड़ी पहल माना जा रहा है। हालांकि भारत की तमाम कोशिशों के बावजूद इसका मुख्यालय नई दिल्ली के बजाय चीन के शांघाई में होगा। मगर इसके पहले अध्यक्ष पर भारत का दावा होगा। सम्मेलन में 100 अरब डॉलर के सीआरए पर बनी सहमति में चीन 41 अरब डालर का अधिकतम योगदान करेगा, जिसके बाद भारत, रूस, ब्राजील 18-18 अरब डालर का योगदान होगा। दक्षिण अफ्रीका का 5 अरब डालर देगा।
रूस के साथ हुई रिश्ते बढ़ाने की बात
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के साथ रक्षा एवं ऊर्जा क्षेत्रों में विशेष रणनीतिक साझेदारी को व्यापक बनाने की पैरवी की है। मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन को आगामी दिसंबर में होने वाली उनकी भारत यात्रा के दौरान कुडनकुलम परमाणु बिजली संयंत्र का दौरा करने के लिए आमंत्रित किया। मोदी और पुतिन ने ब्राजील में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर बीती रात 40 मिनट तक मुलाकात की। इससे पहले दोनों नेताओं की सोमवार की मुलाकात टाल दी गई थी क्योंकि पुतिन ब्राजील की राजधानी ब्रासीलिया में व्यस्त थे।
पुतिन के साथ बतौर प्रधानमंत्री अपनी मुलाकात के बाद मोदी ने ट्वीट किया, 'राष्ट्रपति पुतिन के साथ मेरी मुलाकात में रूस-भारत संबंध को मजबूती देने के बारे में बातचीत हुई। हम रूस के साथ अपनी मित्रता को काफी महत्त्व देते हैं।' पुतिन ने मोदी को आम चुनाव में मिली भारी जीत पर बधाई दी। वर्ष 2001 में मॉस्को में पुतिन से मुलाकात करने वाले मोदी ने कहा कि रूस के साथ हमारा रिश्ता हर कसौटी पर परखा हुआ है तथा उन्होंने इस बात की सराहना की कि दोनों देशों के बीच आजादी के पहले से मधुर संबंध हैं।
मोदी ने रूस की मित्रता और भारत की आजादी के दुनिया में सबसे सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी कौन है बाद से भारत के आर्थिक विकास एवं सुरक्षा में द्विपक्षीय एवं अंतरराष्ट्रीय सहयोग देने की जमकर सराहना की। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'अगर भारत में किसी बच्चे से पूछा जाए कि भारत का सबसे अच्छा दोस्त कौन है तो उसका जवाब रूस होगा क्योंकि संकट के समय रूस हमेशा भारत के साथ रहा है।' मोदी ने कहा कि भारत इस रिश्ते को आगे ले जाने को प्रतिबद्ध है और दोनों देशों के लोगों के बीच संपर्क के साथ परमाणु, रक्षा एवं ऊर्जा क्षेत्रों में रणनीतिक साझेदारी को व्यापक बनाने पर जोर दिया जाता रहेगा।
श्रीलंका के राष्ट्रपति क्यों बोले, ‘हमारे पास इकोनॉमी ही नहीं, तो आर्थिक सुधार क्या करें?’
श्रीलंका अपनी आजादी के बाद से अब तक के सबसे भयानक आर्थिक संकट से गुजर रहा है. इस बीच वहां के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे का ये बयान 'हमारे पास इकोनॉमी ही नहीं, तो आर्थिक सुधार क्या करें?' काफी वायरल हो रहा है. आखिर उन्होंने ऐसी बात क्यों कही है.
भारत का पड़ोसी मुल्क श्रीलंका 1948 में अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुआ. तब से अब तक पर्यटन के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल करने वाली ये द्वीपीय देश वर्तमान में अपने सबसे भयावह आर्थिक संकट (Sri Lanka Economic Crisis) से गुजर रहा है. ऐसे में देश के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Wickremesinghe) का ये कहना कि ‘हमारे पास इकोनॉमी ही नहीं, तो आर्थिक सुधार क्या करें?’ लोगों को चिंता में डालने वाला है. आखिर किस वजह से विक्रमसिंघे ने ये बात कही.
क्या बोले रानिल विक्रमसिंघे ?
श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि देश में आर्थिक सुधारों (वर्तमान में) की कोई तुक नहीं है. उन्होंने कहा कि नकदी संकट दुनिया में सबसे सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी कौन है से जूझ रहे श्रीलंका की अर्थव्यवस्था ही नहीं है, तो आर्थिक सुधार क्या करें. (No point in economic reforms when we don’t have an economy)
श्रीलंका विदेशी मुद्रा भंडार में भारी कमी के चलते अब तक के सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है. इस साल अप्रैल के मध्य में श्रीलंका ने खुद को विदेशी मुद्रा संकट के चलते खुद को इंटरनेशनल लेवल पर कर्ज चुकाने में अक्षम यानी दिवालिया घोषित कर दिया था.
क्यों कही राष्ट्रपति ने ये बात ?
डेली लंका मिरर की एक खबर के हवाले से एजेंसी ने बताया कि रानिल विक्रमसिंघे सोमवार को श्रीलंका इकोनॉमिक समिट 2022 को संबोधित कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने कहा कि संकट में फंसी देश की अर्थव्यवस्था को पुरानी आर्थिक नीतियों (Outdated Economic System) और सिस्टम से ठीक नहीं किया जा सकता. उन्होंने देश में एक नया आर्थिक मॉडल (New Economic Model) बनाने की बात कही.
इसी बात को आगे बढ़ाते हुए विक्रमसिंघे ने कहा कि हमारे पास अर्थव्यवस्था को सुधारने की कोई योजना नहीं है. हम अर्थव्यवस्था को क्या सुधारें जब हमारे पास अर्थव्यवस्था ही नहीं है. हम एक नई अर्थव्यवस्था का निर्माण करना चाहते हैं.
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा व्यापार संतुलन (Sri Lanka Trade Balance) हमारे पक्ष में नहीं है. तो क्या हम फिर से वैसा ही ढांचा खड़ा करने जा रहे हैं और फिर उतनी ही तेजी से नीचे आने का सोच रहे हैं. इसलिए उन्हें लगता है कि आर्थिक सुधार से बात नहीं बनेगी.
बुरी है श्रीलंका की आर्थिक हालत
रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति को मजबूत बनाना हमारी सरकार का मुख्य लक्ष्य है. वहीं देश को एक लॉजिस्टिक हब बनाना वक्त की जरूरत है.
श्रीलंका ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से 2.9 अरब डॉलर के राहत पैकेज की मांग की है. सितंबर में इसकी घोषणा हो चुकी है. पर इसके लिए श्रीलंका को अपने कर्ज को पुनगर्ठित करना है.
इस बारे में राष्ट्रपति ने कहा कि अभी हम अपने द्विपक्षीय कर्जदारों से बातचीत कर रहे हैं. भारत के साथ हमारी बातचीत सफल भी रही है. वहीं हम चीन से भी बातचीत कर रहे हैं. भारत के अडानी समूह (Adani Group in Sri Lanka) के साथ कोलंबो हार्बर के वेस्ट टर्मिनल का विकास करना इसमें अहम कड़ी है.
US की करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट से हटा भारत का नाम, क्या है ये सूची? क्या है इंडिया का लाभ? समझिए
अमेरिका द्वारा भारत को निगरानी सूची से बाहर करना एक शुभ दुनिया में सबसे सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी कौन है संकेत है.
अमेरिका ने भारत का नाम अपनी मुद्रा निगरानी सूची (Currency Monitoring List) से हटा दिया है. इस सूची में करेंसी को मैनिपु . अधिक पढ़ें
- News18Hindi
- Last Updated : November 15, 2022, 13:30 IST
हाइलाइट्स
अमेरिका बड़े व्यापारिक देशों की मुद्रा अथवा करेंसी को मॉनिटर करता है.
मॉनिटरिंग इसलिए कि कोई देश जानबूझकर अपनी करेंसी को कमजोर तो नहीं कर रहा.
कुछ देश या सेंट्रल बैंक अपनी करेंसी को कमजोर करके लाभ उठाने की कोशिश करते हैं.
नई दिल्ली. अमेरिका ने भारत का नाम अपनी मुद्रा निगरानी सूची (Currency Monitoring List) से हटा दिया है. इसकी घोषणा तब की गई है, जब अमेरिका की ट्रेजरी सेक्रेटरी जेनेट येलेन भारत के दौरे पर हैं. कुछ समय बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की पीएम नरेन्द्र मोदी से जी-20 सम्मेलन में मुलाकात भी लगभग तय है.
परंतु अमेरिका द्वारा भारत का नाम इस लिस्ट से हटाने का मतलब क्या है? भारत के लिए इसका लाभ है? अमेरिका की इस लिस्ट का मतलब क्या है? संभव है कि ये सवाल आपको भी परेशान कर रहे होंगे. तो आज हम आपको इन सभी सवालों का जवाब दे रहे हैं.
क्या है अमेरिका की करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट?
भारत के लिए इसका क्या फायदा है, ये जानने से पहले यह जान लेना चाहिए कि आखिर ये लिस्ट है क्या? क्यों इसमें देशों के नाम शामिल किए जाते हैं और क्यों हटाए जाते हैं? बता दें कि अमेरिका जिन देशों के साथ बड़े व्यापारिक सौदे करता है, उन देशों की मुद्रा अथवा करेंसी को मॉनिटर भी करता है. मॉनिटरिंग यह देखने के लिए होती है कि कहीं कोई देश जानबूझकर अपनी करेंसी को मैनिपुलेट तो नहीं कर रहा.
करेंसी मैनिपुलेट का अर्थ आमतौर पर अपने ही देश की मुद्रा को कमजोर दिखाने से है. तो अब सवाल आता है कि आखिर कोई देश अपनी ही करेंसी को कमजोर क्यों करेगा? इसका जवाब है – कई देश अपनी करेंसी को कमजोर करके अपने निर्यात (Exports) की लागत को कम दिखाने की कोशिश करते हैं. बताते हैं कि उनका एक्सपोर्ट कम हो रहा है. वे ऐसा अनैतिक रूप से प्रतिस्पर्धा का लाभ उठाने के लिए करते हैं.
सरल तरीके से कहें तो, अपनी मुद्रा को कमजोर करने के लिए, एक देश अपनी मुद्रा बेचता है और विदेशी मुद्रा (आमतौर पर यूएस डॉलर) खरीदता दुनिया में सबसे सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी कौन है है. आपूर्ति और मांग के नियमों का पालन करते हुए, परिणाम यह आता है कि हेरफेर करने वाला देश अपनी करेंसी की मांग को घटाकर दूसरे देशों की करेंसी की डिमांड को बढ़ाने में सफल हो जाता है.
भारत को इस लिस्ट से हटने का क्या लाभ?
अमेरिका द्वारा भारत को निगरानी सूची से बाहर करना एक शुभ संकेत है. यदि एक्सपर्ट्स की बात पर भरोसा करें तो अब भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) बिना किसी बाहरी प्रभाव के करेंसी के एक्सचेंज रेट्स को मैनेज करने के प्रभावशाली उपाय कर सकता है. यह डेवलपमेंट (करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट से हटना) बाजार के दृष्टिकोण से भी एक बड़ी जीत मानी जा रही है और वैश्विक विकास में भारत की बढ़ती भूमिका को भी दर्शाती है.
इस लिस्ट में से अमेरिका ने मैक्सिको, थाइलैंड, इटली और वियतनाम का नाम भी हटा दिया है. फिलहाल, जापान, चीन, कोरिया, सिंगापुर, जर्मनी, मलेशिया और ताइवान इस लिस्ट में हैं.
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ये हैं दुनिया के 10 सबसे अमीर लोग, जानिए कौन है टॉप पर?
नई दिल्लीः ई-कॉमर्स रिटेलर अमेजन के फाउंडर जेफ बेजॉस कल कुछ घंटों के लिए दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति बन गए थे। उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट के फाउंडर बिल गेट्स को पछाड़ा था। दरअसल अमेजन के शेयर्स में लगभग 2.5 फीसदी की तेजी के चलते उनकी संपत्ति में बढ़ौतरी हुई। हालांकि, स्टॉक मार्कीट बंद होने तक यह बढ़त गायब हो गई और इसके साथ ही बिल गेट्स फिर दुनिया में सबसे अमीर बन गए। बिल गेट्स मई, 2013 से दुनिया के सबसे अमीर बने हुए थे। वहीं इस साल मार्च में बेजॉस दुनिया के रईसों की इस लिस्ट में दूसरे पायदान पर पहुंच गए थे। आज हम आपको बताएंगें दुनिया के टॉप 10 अमीर लोगों के बारे में।
बिल गेट्स
बिल गेट्स के बारे में कौन नहीं जनता कि यह दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति है, यह माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के फाउंडर है और अमरीका के रहने वाले है। उन्होंने 1975 में पॉल ऐलन के साथ माइक्रोसॉफ्ट की स्थापना की थी।
संपत्ति- 89.8 बिलियन डॉलर (करीब 5,76,512 करोड़ रुपए)
जेफ बेजॉस
जेफ बेजॉस दुनिया की जानी-मानी ई-कॉमर्स वेबसाइट अमेज़न के फाउंडर, चेयरमैन और सी.ई.ओ. हैँं।
संपत्ति- 86.9 बिलियन डॉलर (करीब 5,57,941 करोड़ रुपए)
अमांसियो ऑर्टेगा
अमांसियो ओर्टेगा स्पेनिश बिज़नसमैन है। यह इंडीटेक्स फैशन ग्रुप के फाउंडर और चेयरमैन है, इनको जारा क्लोथिंग और एक्सेसरीज रिटेल शॉप से ज्यादा जाना जाता है।
संपत्ति- 82.7 बिलियन डॉलर (करीब 5,30,809 करोड़ रुपए)
वॉरेन बफेट
वॉरेन बफेट बर्कशायर हैथवे के सी.ई.ओ., चेयरमैन और सबसे बड़े शेयरहोल्डर है। इन्हें दुनिया का सबसे सफल निवेशकों में एक माना जाता है।
संपत्ति- 74.4 बिलियन डॉलर (करीब 4,77,502 करोड़ रुपए)
मार्क जुकरबर्ग
सोशल साइट फेसबुक के संस्थापक। मार्क ने फेसबुक कंपनी 2004 को शुरू की थी जब वो 19 साल के थे। फेसबुक दुनिया की सबसे ज्यादा उपयोग की जाने वाली सोशल नेटवर्किंग साईट है।
संपत्ति- 70.5 बिलियन डॉलर (करीब 4,52,472 करोड़ रुपए)
कार्लोस स्लिम
मैक्सिको के रहनेवाले कार्लोस बफेट की तरह ही बिजनसमेन, इन्वेस्टर और दानदाता हैं। साल 2010 से 2013 तक यह दुनिया के धनी लोगों की सूची में टॉप पर रहे। ग्रुप कार्सो के संस्थापक हैं।
संपत्ति- 66.3 बिलियन डॉलर (करीब 4,25,450 करोड़ रुपए)
लैरी एलिसन
अमरीकी बिजनसमेन लैरी एलिसन Oracle कॉर्पोरेशन के संस्थापक हैं।
संपत्ति- 52.9 बिलियन डॉलर (करीब 3,39,461 करोड़ रुपए)
बर्नार्ड अर्नॉल्ट
अर्नॉल्ट फ्रेंच बिजनसमेन, इन्वेस्टर और आर्ट कलेक्टर हैं। वह दुनिया की सबसे बड़ी लग्जरी गुड्स कंपनी LVMH के चेयरमेन और सीईओ हैं।
संपत्ति- 52.4 बिलियन डॉलर (करीब 3,36,224 करोड़ रुपए)
लैरी पेज
अमरीकी कंप्यूटर साइंटिस्ट और इंटरनेट आंट्रप्रन्योर लैरी पेज ने सर्गेई ब्रिन के साथ गूगल की स्थापना की। वह गूगल की पैरंट कंपनी ऐल्फाबेट इंक के सी.ई.ओ. हैं।
संपत्ति- 48 बिलियन डॉलर (करीब 3,08,004 करोड़ रुपए)
चार्ल्स कोच
चार्ल्स कोच अमरीकी बिजनसमेन, पॉलिटिकल डॉनर और दानदाता हैं। वह कोच इंडस्ट्रीज के को-ऑनर, कंपनी के बोर्ड के चेयरमेन और सी.ई.ओ. हैं।
संपत्ति- 47.5 बिलियन डॉलर (करीब 3,04,795 करोड़ रुपए)
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