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संपत्ति चयन प्रक्रिया को समझें

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प्रॉपर्टी ब्रोकर और ब्रोकरेज फर्म के बीच मुख्य अंतर

एक विशाल संपत्ति बाजार में, कभी-कभी संपत्ति ब्रोकर, रियल एस्टेट एजेंट या रियल्टी सलाहकार के बिना एक संपत्ति खरीदने या बेचने के लिए संभव नहीं हो सकता है, जो आपको उसी के साथ मदद करता है। इस मामले में, क्या आपको अपने लिए काम करने के लिए एक व्यक्तिगत एजेंट या ब्रोकरेज फर्म को चुनना चाहिए? हम कुछ उत्तरों को खोजने की कोशिश करते हैं, जो प्रत्येक ऑफ़र के लाभों को देखते हैं।

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कैसे लें गोल्ड लोन, 9 प्‍वाइंट में समझें पूरी प्रक्रिया

आपको गोल्ड लोन की जरूरत पड़े तो इसके लिए बैंक या फाइनेंस कंपनी की नजदीकी शाखा का संपत्ति चयन प्रक्रिया को समझें चयन करें. इस पहल के जरिए आने-जाने के साथ-साथ कई और भी फायदे होंगे.

  • Money9 Hindi
  • Updated On - January 28, संपत्ति चयन प्रक्रिया को समझें 2022 / 06:34 PM IST

कैसे लें गोल्ड लोन, 9 प्‍वाइंट में समझें पूरी प्रक्रिया

हमारे यहां सोेने का आपात कोष के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. थोड़ा-थोड़ा खरीद कर इकट्ठा कर लो और आड़े वक्त में जब पैसे की जरूरत हो तब इसके एवज में कर्ज ले लो अथवा बेच दो. कर्ज लेने का चलन तो सदियों से चला रहा है. पहले साहूकार, सुनार या बड़े दुकानदार सोना गिरवी रखकर कर्ज देते थे. लेकिन समय के साथ गोल्ड लोन का स्वरूप बदल रहा है. अब तमाम बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) गोल्ड के एवज में लोन दे रहे हैं. मामूली औपचारिकताएं पूरी करने पर आपको लोन मिल जाएगा. आइए समझते हैं कि गोल्ड लेने की पूरी प्रक्रिया है-

1. नजदीकी ब्रांच चुनें

जब भी आपको गोल्ड लोन की जरूरत पड़े तो इसके लिए बैंक या फाइनेंस कंपनी की नजदीकी शाखा का चयन करें. इस पहल के जरिए आने-जाने के साथ-साथ कई और भी फायदे होंगे.

2. गहनों की परख

गोल्ड लोन लेने के लिए आपको अपने पास रखे सोने संपत्ति चयन प्रक्रिया को समझें के सिक्के, बिस्किट या गहनों को लेकर बैंक या फाइनेंस कंपनी की शाखा में जाना होगा. यहां संस्थान के कर्मचारी इसकी शुद्धता की जांच करेंगे.

3. गोल्ड की वैल्युशन

गोल्ड की शुद्धता के आधार पर संस्थान के कर्मचारी इसकी कीमत तय करेंगे. आमतौर पर बैंक और वित्तीय संस्थान सोने की कीमत का 75 फीसद तक ही लोन देते हैं.

4. कितना शुद्ध सोना

नियमों के तहत संस्थान 18 कैरेट और इससे ऊपर की शुद्धता वाले सोने पर ही कर्ज देते हैं. 18 कैरेट से कम शुद्ध सोने पर कर्ज नहीं देते. कई संस्थान 50 ग्राम से ऊपर के सिक्के स्वीकार नहीं करते हैं.

5. जरूरी कागजात

गोल्ड लोन का आवेदन करने के लिए आपको पहचान पत्र के तौर पर आधार कार्ड या पैन की जरूरत पड़ेगी। एड्रेस प्रूफ के लिए राशन कार्ड, बिजली या टेलीफोन बिल दे सकते हैं. इसके साथ ही फोटोग्राफ भी देना होगा. कई संस्थान इनकम प्रूफ भी मांगते हैं.

6 लोन की रकम

आपके लिए जो गोल्ड लोन स्वीकृत हुआ है उसकी रकम आपके खाते में सीधे ट्रांसफर कर दी जाती है. कुछ फाइनेंस कंपनियां दो लाख रुपए से कम तक की रकम कैश में दे देती हैं. उससे ऊपर की राशि एनईएफटी के जरिए सीधे खाते में ट्रांसफर कर दी जाती है.

7. भुगतान संपत्ति चयन प्रक्रिया को समझें का विकल्प

आमतौर पर कर्ज देने वाले संस्थान हर महीने ब्याज की वसूली करते हैं. लोन की अवधि पूरी होने पर एकमुश्त मूलधन जमा कराते हैं. कुछ संस्थान ईएमआई पर भी गोल्ड लोन देते हैं.

8. गोल्ड की नीलामी

ब्याज का समय पर भुगतान न करने पर वित्तीय संस्थान पेनाल्टी लगाते हैं. यदि 14 महीने तक ब्याज का भुगतान नहीं किया है तो वह आपके सोने की नीलामी कर सकते हैं. यह काम करने से पहले कर्जदार को नोटिस जारी किया जाता है.

9. सिबिल का रखें ध्यान

निर्धारित अवधि में कर्ज का संपत्ति चयन प्रक्रिया को समझें भुगतान न करने पर वित्तीय संस्थान आपके गोल्ड काे जब्त कर सकते हैं। इसके बाद नीलामी करके बकाया वसूल लेते हैं। इस प्रक्रिया से बचने की हरसंभव कोशिश करनी चाहिए क्योंकि इससे आपका सिबिल स्कोर और क्रेडिट हिस्ट्री खराब हो जाते हैं.

पिता की संपत्ति पर बेटी कब कर सकती है दावा, कब नहीं? जानें, क्या कहता है हिंदू उत्तराधिकार कानून

इसमें दो राय नहीं कि पिता, भाई, पति अथवा अन्य किसी पर भी वित्तीय निर्भरता से महिलाओं की जिंदगी कठिन हो जाती है। यही वजह है कि हिंदू सक्सेशन ऐक्ट, 1956 में साल 2005 में संशोधन कर बेटियों को पैतृक संपत्ति में समान हिस्सा पाने का कानूनी अधिकार दिया गया। नए कानून में बेटी संपत्ति चयन प्रक्रिया को समझें को किन परिस्थितियों में पिता की संपत्ति पर अधिकार दिया गया है, कब नहीं, समझें।

Daughter-and-father

सांकेतिक तस्वीर।

3. अगर वसीयत लिखे बिना पिता की मौत हो जाती है
अगर वसीयत लिखने से पहले पिता की मौत हो जाती है तो सभी कानूनी उत्तराधिकारियों को उनकी संपत्ति पर समान अधिकार होगा। हिंदू उत्तराधिकार कानून में पुरुष उत्तराधिकारियों का चार श्रेणियों में वर्गीकरण किया गया है और पिता की संपत्ति पर पहला हक संपत्ति चयन प्रक्रिया को समझें पहली श्रेणी के उत्तराधिकारियों का होता है। इनमें विधवा, बेटियां और बेटों के साथ-साथ अन्य लोग आते हैं। हरेक उत्तराधिकारी का संपत्ति पर समान अधिकार होता है। इसका मतलब है कि बेटी के रूप में आपको अपने पिता की संपत्ति पर पूरा हक है।

4. अगर बेटी विवाहित हो
2005 से पहले हिंदू उत्तराधिकार कानून में बेटियां सिर्फ हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) की सदस्य मानी जाती थीं, हमवारिस यानी समान उत्तराधिकारी नहीं। हमवारिस या समान उत्तराधिकारी वे होते/होती हैं जिनका अपने से पहले की चार पीढ़ियों की अविभाजित संपत्तियों पर हक होता है। हालांकि, बेटी का विवाह हो जाने पर उसे हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) का भी हिस्सा नहीं माना जाता है। 2005 के संशोधन के बाद बेटी को हमवारिस यानी समान उत्तराधिकारी माना गया है। अब बेटी के विवाह से पिता की संपत्ति पर उसके अधिकार में कोई संपत्ति चयन प्रक्रिया को समझें बदलाव नहीं आता है। यानी, विवाह के बाद भी बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार रहता है।

5. अगर 2005 से पहले बेटी पैदा हुई हो, लेकिन पिता की मृत्यु हो गई हो
हिंदू उत्तराधिकार कानून में हुआ संशोधन 9 सितंबर, 2005 से लागू हुआ। कानून कहता है कि कोई फर्क नहीं पड़ता है कि बेटी का जन्म इस तारीख से पहले हुआ है या बाद में, उसका पिता की संपत्ति में अपने भाई के बराबर ही हिस्सा होगा। वह संपत्ति चाहे पैतृक हो या फिर पिता की स्वअर्जित। दूसरी तरफ, बेटी तभी अपने पिता की संपत्ति में अपनी हिस्सेदारी का दावा कर सकती है जब पिता 9 सितंबर, 2005 को जिंदा रहे हों। अगर पिता की मृत्यु इस तारीख से पहले हो गई हो तो बेटी का पैतृक संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होगा और पिता की स्वअर्जित संपत्ति का बंटवारा उनकी इच्छा के अनुरूप ही होगा।

किसी की मृत्यु के बाद नॉमिनी के नहीं होते बैंक में जमा पैसे, जानिए- फिर किसका होता है हक?

अक्सर माना जाता है कि अगर बैंक अकाउंट में कोई पैसे जमा हैं तो वो पैसे अकाउंट होल्डर की ओर से बनाए गए नॉमिनी के होंगे तो जमीन पर हक वारिस का बताया जाता है. लेकिन, आपको भी जानकर हैरानी होगी कि नॉमिनी हमेशा उस संपत्ति या पैसे का हकदार नहीं होता है.

किसी की मृत्यु के बाद नॉमिनी के नहीं होते बैंक में जमा पैसे, जानिए- फिर किसका होता है हक?

जब आप भी कोई निवेश करते हैं या बैंक अकाउंट खुलवाते हैं तो आपको फॉर्म में नॉमिनी की जानकारी देनी होती है.

किसी की भी व्यक्ति के मृत्यु के बाद सबसे ज्यादा चर्चा नॉमिनी और वारिस को लेकर होती है. उस व्यक्ति की संपत्ति पर किसका हक होगा, इसे लेकर काफी बातें की जाती हैं. अक्सर माना जाता है कि अगर बैंक अकाउंट में कोई पैसे जमा हैं तो वो पैसे अकाउंट होल्डर की ओर से बनाए गए नॉमिनी के होंगे तो जमीन पर हक वारिस का बताया जाता है. लेकिन, आपको भी जानकर हैरानी होगी कि नॉमिनी हमेशा उस संपत्ति या पैसे का हकदार नहीं होता है.

अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है कि नॉमिनी बनाए जाने के बाद भी वो उस पैसे का हकदार नहीं होता है. सवाल उठता है कि अगर बैंक में जमा पैसे पर नॉमिनी का हक नहीं होता है तो फिर यह पैसा किसे मिलता है? ऐसे में आज हम आपको नॉमिनी से जुड़े कुछ ऐसे तथ्य बता रहे हैं, जो आप शायद ही जानते होंगे. साथ ही जानते हैं कि कानूनी तौर पर नॉमिनी का किसी की संपत्ति पर कितना हक होता है.

क्या होता है नॉमिनी?

मनी9 की एक रिपोर्ट के अनुसार, जब आप भी कोई निवेश करते हैं या बैंक अकाउंट खुलवाते हैं तो आपको फॉर्म में नॉमिनी की जानकारी देनी होती है. इसका मतलब होता है कि अगर अकाउंट होल्डर की दुर्भाग्यवश मृत्यु हो जाती है तो नॉमिनी के पास ये पास पैसा जाता है. लेकिन, नॉमिनी इस पैसे का असली मालिक नहीं होता है.

कानूनी तौर पर समझें तो नॉमिनी सिर्फ संपत्ति, निवेश या पैसे का सिर्फ ट्रस्टी होती है यानी एक रखवाला होता है. किसी की मृत्यु हो जाने की दशा में बैंक में या एफडी में जमा पैसा नॉमिनी के पास ही जाता है, लेकिन वो इसका हकदार नहीं होता है. सीधे शब्दों में कहें तो नॉमिनी किसी भी संपत्ति का एक केयर टेकर होता है.

फिर कौन होता है उत्तराधिकारी?

जब भी किसी की मृत्यु हो जाती है तो जमीन आदि का मालिकाना हक, उस व्यक्ति के उत्तराधिकारी या वारिस को मिल जाता है. ये बात जानकार आपको हैरान होगी कि नॉमिनी की स्थिति में भी बैंक या एफडी आदि का असली हकदार वारिस ही होता है. अगर नॉमिनी भी बनाया गया है तो ये पैसे पहले नॉमिनी के पास जाएंगे और उस पैसे को नॉमिनी को उत्तराधिकारी को देने होते हैं. वो इसका मालिक नहीं हो सकता है. लेकिन, आपको बता दें कि कुछ फंड या निवेश में ऐसा नहीं होता है. कुछ सेक्टर्स में नॉमिनी ही पैसे का असली हकदार होता है.

किन मायनों में है नॉमिनी नहीं है मालिक?

बता दें कि बैंक में जमा पैसे, एफडी के लिए नॉमिनी सिर्फ ट्रस्टी होता है. अगर कोई फैमिली मेंबर ही नॉमिनी है तो भी यह पैसे उत्तराधिकारी के पास जाएगा. वहीं, म्यूचुअल फंड और शेयर में भी नॉमिनी सिर्फ ट्रस्टी की भूमिका निभाता है यानी वो पैसे का हकदार नहीं होता है. इसे अलावा पीपीएफ में भी नॉमिनी ट्रस्टी ही होता है.

किन मायनों में है नॉमिनी होता है मालिक?

बता दें कि इंश्योरेंस से जुड़े मामलों में नॉमिनी को ही मालिक माना गया है. यानी अकाउंट में नॉमिनी के तौर पर जिस व्यक्ति का नाम लिखा होता है, उसे ही पैसा दिया जाता है. इन्हें बेनिफिशयल नॉमिनी कहा जाता है. वहीं, ये ही नियम ईपीएफ में भी लागू होता है, जिसके अनुसार पीएफ अकाउंट खोलते समय जिसे नॉमिनी बनाया गया था, वो ही नॉमिनी होगा.

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