सम-विच्छेद विश्लेषण की सीमायें - Limitations of Break-even Analysis
सम-विच्छेद विश्लेषण की सीमायें - Limitations of Break-even Analysis
सम- विच्छेद विश्लेषण भी बहुत-सी अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित हैं जिसके कारण इसकी प्रबन्धकीय उपयोगिता सीमित हो जाती है। वास्तव में इसकी सीमायें इसकी अवास्तविक मान्यताओं के कारण है। इसकी प्रमुख सीमायें निम्नलिखित हैं-
(1) सम-विच्छेद विश्लेषण में विक्रय मात्रा के अतिरिक्त अन्य सभी कारकों को स्थिर और असम्बद्ध मान लिया जाता है। वास्तव में ये कारक दीर्घकाल तक स्थिर नहीं रहते. हैं। सांख्यिकीय पद्धतियों के प्रयोग से भी इन कारकों के प्रभावों को पूर्णतया दूर करना कठिन है।
(2) सम-विच्छेद विश्लेषण में यह मान्यता रहती है कि सभी लागतों के स्थिर और परिवर्तनशील भागों को पृथक-पृथक किया जा सकता है, किन्तु व्यवहार में यह मान्यता सही नहीं निकलती। वास्तव में बहुत सी लागतों के स्थिर और परिवर्तनशील भागों का सूक्ष्म पृथक्करण सम्भव नहीं होता है।
(3) लागत व्यवहार के समक क्रियाओं के एक सीमित क्षेत्र तक ही सही होते हैं। इस संकीर्ण क्षेत्र के ऊपर या नीचे लागत व्यवहार की शैलियों (Patterns) ही बदल जाती हैं और लागत व्यवहार रेखीय नहीं रह पाता है। जैसे विच्छेद विश्लेषण की सीमाएं किसी कारखाने को अल्पकाल के लिये बन्द कर देने पर प्रबन्ध कुछ स्थिर व्ययों में कमी करने में सफल हो सकता है। इसी तरह परिवर्तनशील लागतों को उत्पादन मात्रा के अनुपात में परिवर्तनीय माना जाता है, परन्तु व्यवहार में उत्पादन मात्रा के अनुकूलतम बिन्दु तक बढ़ाने पर प्रति इकाई परिवर्तनशील लागत घटती है और इस बिन्दु के पश्चात् यह बढ़ने लगती है। इसी तरह कुल आगम रेखा का एक सीधी रेखा के रूप में होना भी आवश्यक नहीं होता।
(4) तीसरे नम्बर के कारण यह मान्यता भी गलत सिद्ध होती है कि अधिकतम उत्पादन स्तर पर ही अधिकतम लाभ होंगे। परन्तु वास्तव में लाभों को अधिकतम करने के लिये अनुकूलतम उत्पादन का ज्ञात करना आवश्यक होता है।
(5) पूर्ण प्रतियोगिता की अवास्तविक मान्यता के अतिरिक्त व्यावहारिक जीवन में वस्तु के मूल्य का असीमित विक्रय मात्रा के क्षेत्र के लिये स्थिर मानना अवास्तविक है। व्यवहार में उत्पादन मात्रा के बढ़ने पर विक्रय मूल्य में गिरावट आती है।
(6) उत्पादन और विक्रय मात्रा के समसामयिक होने की मान्यता अव्यावहारिक है। वास्तव में एक बड़े व्यवसाय में किसी एक निश्चित समय में उत्पादन और विक्रय की मात्रा पूर्णतया समान नहीं रहती है। अतः अन्तिम स्कन्ध में उच्चावचन भी स्वाभाविक है।
इससे सम-विच्छेद विश्लेषण भ्रामक विच्छेद विश्लेषण की सीमाएं विच्छेद विश्लेषण की सीमाएं परिणाम दे सकता है।
(7) इसी तरह विक्रय - मिश्रण के स्थिर रहने की मान्यता भी अव्यावहारिक है। बाजार में किसी एक वस्तु की माँग में परिवर्तन हो जाने पर विक्रय मिश्रण पूर्व निर्धारित मिश्रण से भिन्न हो जाता है।
(8) यह विश्लेषण प्रयुक्त पूँजी (Capital employed ) पर ध्यान नहीं देता जो कि प्रबन्धकीय निर्णय में एक महत्वपूर्ण कारक होता है।
(9) सभी लागतों को स्थिर व परिवर्तनशील भागों में विभाजित करना कठिन होता है।
(10) विच्छेद विश्लेषण की सीमाएं विच्छेद विश्लेषण की सीमाएं सम- विच्छेद विश्लेषण का स्वरूप स्थैतिक (static) है। यह अपेक्षाकृत स्थिर दशाओं में अधिक उपयोगी रहता है। अतः लागत और आगम की परिवर्तित दशाओं में यह बहुत कम उपयोगी होता है।
(11) सम-विच्छेद विश्लेषण दीर्घकालीन उपयोग के लिये प्रभावशाली तकनीक नहीं है।
अतः इसका उपयोग केवल अल्पकाल (1 वर्ष) तक ही सीमित रहना चाहिये ।
(12) सम-विच्छेद विश्लेषण में विक्रय लागतों का संचालन करना (handle) विशेष कठिन होता है क्योंकि ये लागते उत्पादन और विक्रयों में परिवर्तन का परिणाम न होकर कारण होती है। इसके अतिरिक्त उत्पादन और विक्रय लागतों के बीच सम्बन्ध लम्बे समय तक स्थिर नहीं रहता। इसलिये भूतकालीन सम्बन्धों के आधार पर इनकी भविष्यवाणी अशुद्ध साबित हो सकती है।
अतः स्पष्ट है कि सम-विच्छेद विश्लेषण की युक्ति का प्रयोग बहुत ही सावधानीपूर्वक करना चाहिये और उसमें परिवर्तित परिस्थितियों के अनुसार आवश्यक परिवर्तन करते रहना चाहिये। इस युक्ति का कुशल प्रयोग केवल वे ही व्यक्ति कर सकते हैं जो कि इसकी सीमाओं को भली प्रकार समझते हैं।
सम-विच्छेद विश्लेषण क्या है ?
➲ सम विच्छेद विश्लेषण से तात्पर्य प्रबंधकीय नियंत्रण में प्रयोग की जाने वाली उस विधि से होता है, जिसमें यह आकलन किया जाता है कि किसी उत्पाद का किस मात्रा तक विक्रय करने या उत्पादन करने पर हानि होगी और किस मात्रा के बाद लाभ होना आरंभ होगा। उत्पादन की वह यात्रा जिस पर ना तो लाभ हो और ना ही हानि हो, सम-विच्छेद बिंदु कहलाता है। इसका अर्थ है, कि इस बिंदु पर होने वाली कुल आय कुल लागत के बराबर होती है। यह पूरा विश्लेषण ‘सम-विच्छेद विश्लेषण’ कहलाता है।
‘सम विच्छेद विश्लेषण’ में सम-विच्छेद बिंदु से नीचे उत्पाद का विक्रय अथवा उत्पादन करने पर हानि होती है और यदि इस बिंदु से ऊपर विक्रय अथवा उत्पादन किया जाता है, तो लाभ होगा।
सम-विच्छेद बिंदु निकालने की गणना गणित के सूत्र के विच्छेद विश्लेषण की सीमाएं माध्यम से की जाती है, जो कि इस प्रकार है.
सम विच्छेद बिंदु = कुल स्थायी लागत / परिवर्तनशील लागत प्रति यूनिट
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सम विच्छेद बिंदु व सुरक्षा सीमा किसे कहते हैं
विक्रय अथवा उत्पादन की वह मात्रा जिस पर न लाभ होता है न ही हानि, सम-विच्छेद बिन्दु (Break Even Point) कहलाता है । . इस बिन्दु अथवा सीमा की गणना गणित के माध्यम से की जाती है । इसे लाभ का ग्राफ (Profit Graph) भी कहते हैं ।
Explanation:
सम-विच्छेद बिन्दु व सुरक्षा सीमा किसे कहते है ?
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सम-विच्छेद विश्लेषण की सीमाएं - Limitations of Break-even Analysis
सम-विच्छेद विश्लेषण की सीमाएं - Limitations of Break-even Analysis
सम-विच्छेद विश्लेषण की मुख्य सीमाएं निम्नलिखित है-
(1) स्थिर एवं परिवर्तनशील लागतों के विभाजन में कठिनाई (Difficulties in the Classification of Fixed and Variable Costs) – यह विश्लेषण इस मान्यता पर आधारित है कि उत्पादन लागतों को स्थिर एवं परिवर्तनशील दो प्रकार की लागतों में विभाजित किया जा सकता है, परन्तु व्यावहारिक जीवन में न तो कोई लागत पूर्णतः स्थायी होती है और न ही पूर्णतः परिवर्तनशील ।
(2) स्थायी एवं परिवर्तनशील व्यय का अनुपात ( Ratio of Fixed and Variable Expenses) - सम-विच्छेद विश्लेषण उसी परिस्थिति में उपयोगी सिद्ध हो सकता है जब स्थिर एवं परिवर्तनशील व्ययों का अनुपात स्थिर रहे
(3) विक्रय मूल्य (Selling Price ) - यह विश्लेषण इस मान्यता पर आधारित है कि उत्पादन एवं विक्रय के सभी स्तरों पर विक्रय मूल्य में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नही होता अर्थात सभी स्तरों पर विक्रय मूल्य पूर्ववत् ही बना रहता है, जबकि वास्तविकता यह है कि उत्पादन मात्रा में वृद्धि के साथ-साथ विक्रय मूल्य में कमी करनी पड़ती है।
(4) उत्पादन लागत को प्रभावित करने वाले तत्व (Factor affecting Production Costs) - इस विश्लेषण के अन्तर्गत उत्पादन लागत में होने वाले परिवर्तनों का एक मात्र कारण स्थायी एवं परिवर्तनशील व्ययों की प्रकृति माना जाता है जबकि वास्तविकता यह है कि उत्पादन लागत पर अन्य कारकों का भी प्रभाव पड़ता है जैसे- श्रम एवं मशीनों की कुशलता, संयन्त्र क्षमता, तकनीकी योग्यता आदि
(5) विक्रय मिश्रण में स्थिरता (Stability in Sales Mix) - यह विश्लेषण इस मान्यता पर आधारित है कि विक्रय मिश्रण में कोई परिवर्तन नही होता है जो कि गलत है। वास्तविकता यह है कि वस्तु की मांग के अनुसार विक्रय मिश्रण में परिवर्तन करना आवश्यक हो जाता है।
(6) विनियोजित पूंजी पर कोई ध्यान नहीं (No Attention on Capital Employed ) – यह विश्लेषण विनियोजित पूंजी पर भी कोई ध्यान नही देता है जो कि प्रबन्धकीय निर्णय में एक महत्वपूर्ण कारक होता है।
(7) अधिकतम उत्पादन स्तर पर अधिकतम लाभ (Maximum Profit on Maximum Production Level) - इस विश्लेषण की यह मान्यता भी सत्य नही है कि अधिकतम उत्पादन स्तर पर ही अधिकतम लाभ होंगे। वास्तविकता यह है कि अधिकतम लाभ अधिकतम उत्पादन स्तर पर नहीं होता बल्कि अनुकूलतम उत्पादन स्तर (Optimum Production Level) पर होता है।
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