अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया 82.75 प्रति डॉलर पर स्थिर बंद
मुंबई, 16 दिसंबर (भाषा) अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया शुक्रवार को 82.75 प्रति डॉलर पर लगभग स्थिर बंद हुआ। बढ़ते ब्याज दर और मुद्रास्फीति की चिंताओं के बीच कच्चे तेल विदेशी मुद्रा की कीमतें कीमतों में गिरावट और विदेशी मुद्रा के अंत:प्रवाह के कारण रुपया अपरिवर्तित रहा। विदेशों में डॉलर के मजबूत होने और घरेलू शेयरों में भारी बिकवाली दवाब के कारण रुपया 82.89 रुपये प्रति डॉलर के निम्न स्तर को छू गया। बाजार सूत्रों ने कहा कि हालांकि कच्चे तेल कीमतों में विदेशी मुद्रा की कीमतें गिरावट और पूंजी बाजार में विदेशीमुद्रा का निवेश बढ़ने से रुपये की हानि को कम करने
विदेशों में डॉलर के मजबूत होने और घरेलू शेयरों में भारी बिकवाली दवाब के कारण रुपया 82.89 रुपये प्रति डॉलर के निम्न स्तर को छू गया।
बाजार सूत्रों ने कहा कि हालांकि कच्चे तेल कीमतों में गिरावट और पूंजी बाजार में विदेशीमुद्रा का निवेश बढ़ने से रुपये की हानि को कम करने में मदद मिली और यह 82.73 के उच्च स्तर को छू गया।
कारोबार के अंत में रुपया एक पैसे की तेजी के साथ 82.75 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ। रुपया बृहस्पतिवार को 82.76 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ था।
लगातार दूसरे सप्ताह, रुपये में गिरावट आई है और इस सप्ताह डॉलर के मुकाबले रुपया 47 पैसे घटा है।
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशल सर्विसेज के विदेशीमुद्रा एवं सर्राफा विश्लेषक गौरांग सोमैय्या ने कहा, ‘‘केन्द्रीय बैंक के नीतिगत बयान के बाद रुपया अपरिवर्तित रुख के साथ खुला लेकिन इस पर मामूली दवाब दिखा।’’
इस बीच, दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं की तुलना में डॉलर की मजबूती को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.13 प्रतिशत बढ़कर 104.69 हो गया।
वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा 2.29 प्रतिशत घटकर 79.35 डॉलर प्रति बैरल रह गया।
बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 461.22 अंक घटकर 61,337.81 अंक पर बंद हुआ।
शेयर बाजार के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) पूंजी बाजार में शुद्ध बिकवाल रहे और उन्होंने बृहस्पतिवार को 1,542.50 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर बेचे।
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एक डॉलर की कीमत 80 रुपये पर पहुंची, जानें- क्यों कमजोर होता जा रहा है रुपया, अभी और कितनी गिरावट बाकी?
Rupee Vs Dollar: एक डॉलर की कीमत 80 रुपये पर पहुंच गई है. संसद में सवालों के जवाब में केंद्र सरकार की तरफ से जवाब दिया गया है कि 2014 के बाद से डॉलर के मुकाबले रुपये में अभी तक 25 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी है.
Updated: July 19, 2022 12:44 PM IST
Rupee Vs Dollar: मंगलवार को शुरुआती कारोबार में भारतीय रुपया मनोवैज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण विनिमय दर के स्तर डॉलर के मुकाबले 80 रुपये के स्तर से नीचे चला गया. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, रुपया घटकर 80.06 प्रति डॉलर पर आ गया.
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रुपया विनिमय दर क्या है?
अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपये की विनिमय दर अनिवार्य रूप से एक अमेरिकी डॉलर को खरीदने के लिए आवश्यक रुपये की संख्या है. यह न केवल अमेरिकी सामान खरीदने के लिए बल्कि अन्य वस्तुओं और सेवाओं (जैसे कच्चा तेल) की पूरी मेजबानी के लिए एक महत्वपूर्ण मीट्रिक है, जिसके लिए भारतीय नागरिकों और कंपनियों को डॉलर की आवश्यकता होती है.
जब रुपये का अवमूल्यन होता है, तो भारत के बाहर से कुछ खरीदना (आयात करना) महंगा हो जाता है. इसी तर्क से, यदि कोई शेष विश्व (विशेषकर अमेरिका) को माल और सेवाओं को बेचने (निर्यात) करने की कोशिश कर रहा है, तो गिरता हुआ रुपया भारत के उत्पादों को और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाता है, क्योंकि रुपये का अवमूल्य विदेशियों के लिए भारतीय उत्पादों को खरीदना सस्ता बनाता है.
डॉलर के मुकाबले रुपया क्यों कमजोर हो रहा है?
सीधे शब्दों में कहें तो डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है, क्योंकि बाजार में रुपये की तुलना में डॉलर की मांग ज्यादा है. रुपये की तुलना में डॉलर की बढ़ी हुई मांग, दो कारकों के कारण बढ़ रही है.
पहला विदेशी मुद्रा की कीमतें विदेशी मुद्रा की कीमतें यह कि भारतीय जितना निर्यात करते हैं, उससे अधिक वस्तुओं और सेवाओं का आयात करते हैं. इसे ही करेंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) कहा जाता है. जब किसी देश के पास यह होता है, तो इसका तात्पर्य है कि जो आ रहा है उससे अधिक विदेशी मुद्रा (विशेषकर डॉलर) भारत से बाहर निकल रही है.
2022 की शुरुआत के बाद से, जैसा कि यूक्रेन में युद्ध के मद्देनजर कच्चे तेल और अन्य कमोडिटीज की कीमतों में बढ़ोतरी होने लगी है, जिसकी वजह से भारत का सीएडी तेजी से बढ़ा है. इसने रुपये में अवमूल्यन यानी डॉलर के मुकाबले मूल्य कम करने का दबाव डाला है. देश के बाहर से सामान आयात करने के लिए भारतीय ज्यादा डॉलर की मांग कर रहे हैं.
दूसरा, भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश में विदेशी मुद्रा की कीमतें गिरावट दर्ज की गयी है. ऐतिहासिक रूप से, भारत के साथ-साथ अधिकांश विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में CAD की प्रवृत्ति होती है. लेकिन भारत के मामले में, यह घाटा देश में निवेश करने के लिए जल्दबाजी करने वाले विदेशी निवेशकों द्वारा पूरा नहीं किया गया था; इसे कैपिटल अकाउंट सरप्लस भी कहा जाता है. इस अधिशेष ने अरबों डॉलर लाए और यह सुनिश्चित किया कि रुपये (डॉलर के सापेक्ष) की मांग मजबूत बनी रहे.
लेकिन 2022 की शुरुआत के बाद से, अधिक से अधिक विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों से पैसा निकाल रहे हैं. ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि भारत की तुलना में अमेरिका में ब्याज दरें बहुत तेजी से बढ़ रही हैं. अमेरिका में ऐतिहासिक रूप से उच्च मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए अमेरिकी केंद्रीय बैंक आक्रामक रूप से ब्याज दरों में वृद्धि कर रहा है. निवेश में इस गिरावट ने भारतीय शेयर बाजारों में निवेश करने के इच्छुक निवेशकों के बीच भारतीय रुपये की मांग में तेजी से कमी की है.
इन दोनों प्रवृत्तियों का परिणाम यह है कि डॉलर के सापेक्ष रुपये की मांग में तेजी से गिरावट दर्ज की गयी है. यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है.
क्या डॉलर के मुकाबले केवल रुपये में ही आई है गिरावट?
यूरो और जापानी येन समेत सभी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर मजबूत हो रहा है. दरअसल, यूरो जैसी कई मुद्राओं के मुकाबले रुपये में तेजी आयी है.
क्या रुपया सुरक्षित क्षेत्र में है?
रुपये की विनिमय दर को “प्रबंधित” करने में आरबीआई की भूमिका को समझना महत्वपूर्ण है. यदि विनिमय दर पूरी तरह से बाजार द्वारा निर्धारित की जाती है, तो इसमें तेजी से उतार-चढ़ाव होता है – जब रुपया मजबूत होता है और रुपये का अवमूल्यन होता है.
लेकिन आरबीआई रुपये की विनिमय दर में तेज उतार-चढ़ाव की अनुमति नहीं देता है. यह गिरावट को कम करने या वृद्धि को सीमित करने के लिए हस्तक्षेप करता है. यह बाजार में डॉलर बेचकर गिरावट को रोकने की कोशिश करता है. यह एक ऐसा कदम है जो डॉलर की तुलना में रुपये की मांग के बीच के अंतर को कम करता है. जिससे भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आती है. जब आरबीआई रुपये को मजबूत होने से रोकना चाहता है तो वह बाजार से अतिरिक्त डॉलर निकाल लेता है, जिससे भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी होती है.
एक डॉलर की कीमत 80 रुपये से ज्यादा होने के बाद यह कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या रुपये में और गिरावट आनी बाकी है? जानकारों का मानना है कि 80 रुपये का स्तर एक मनोवैज्ञानिक स्तर था. अब इससे नीचे आने के बाद यह 82 डॉलर तक पहुंच सकता है.
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गिरावट की मुद्रा
भारतीय रुपया एक बार फिर डालर के मुकाबले गिर कर चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया।
सांकेतिक फोटो।
रुपया लगातार नीचे की तरफ रुख किए हुए है, इसलिए इसे लेकर अर्थव्यवस्था में सुधार की संभावनाएं धुंधली होने लगी हैं। जब भी किसी मुद्रा में लगातार गिरावट का रुख बना रहता है, तो वहां मंदी की संभावना प्रबल होने लगती है। एक डालर की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में तिरासी रुपए एक पैसा आंकी गई।
हालांकि सरकार को उम्मीद है कि यह दौर जल्दी ही खत्म हो जाएगा और भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत स्थिति में पहुंच जाएगी। शायद इसी विश्वास के चलते वित्त मंत्री ने भी कह दिया कि रुपए की कीमत नहीं गिर रही, डालर मजबूत हो रहा है। रुपए की कमजोरी की बड़ी वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को बताया जा रहा है। मगर केवल इन्हीं दो स्थितियों को रुपए के कमजोर होने का कारण नहीं माना जा सकता। किसी भी मुद्रा में गिरावट तब आनी शुरू होती है जब घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में सिकुड़न आने लगती है यानी खरीदारी कम होने लगती है। लोगों की क्रयशक्ति घटने लगती है और लोग निवेश को लेकर हाथ रोक देते हैं।
पूरी दुनिया में अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है। विकसित देशों में भी खुदरा और थोक महंगाई चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई है। इसका असर यह हुआ है कि उत्पादन घट रहा है। भारत में भी औद्योगिक उत्पादन का रुख नीचे की तरफ बना हुआ है। घरेलू बाजार में ही खपत ठहर गई है। विदेशी बाजारों में महंगाई बढ़ी होने की वजह से भारतीय वस्तुओं की पहुंच संतोषजनक नहीं हो पा रही।
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निर्यात के मामले में पहले ही लक्ष्य तक पहुंचने में कामयाबी नहीं मिल पा रही थी, कोरोनाकाल के बाद स्थिति और खराब हुई है। निर्यात घटने से विदेशी मुद्रा भंडार में अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं हो पाती। फिर जब रुपए की कीमत गिरती है, तो बाहर से मंगाई जाने वाली वस्तुओं पर अधिक कीमत चुकानी पड़ती है। इस तरह विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार कमी आती जाती है।
भारत डीजल और पेट्रोल के मामले में दूसरे देशों पर निर्भर है, इसलिए उसे अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है। फिर घरेलू बाजार में पेट्रोल-डीजल की कीमतें संतुलित नहीं हो पा रही हैं और उसका असर न सिर्फ माल ढुलाई और परिवहन पर पड़ता है, बल्कि औद्योगिक उत्पादन में भी लागत बढ़ जाती है। इस तरह एक ऐसा चक्र बनता है, जिसे सुधारने के लिए बुनियादी स्तर से काम करना जरूरी होता है।
रुपए की गिरती कीमत और बढ़ती महंगाई का सीधा असर रोजगार सृजन पर पड़ता है। उत्पादन घटता है, तो औद्योगिक इकाइयों की कमाई भी घट जाती है, जिसके चलते उन्हें अपने खर्च में कटौती करनी पड़ती है। स्वाभाविक ही वे छंटनी का फैसला करती हैं। रिजर्व बैंक रेपो दर में बढ़ोतरी कर महंगाई पर काबू पाने का प्रयास कर रहा है, मगर इसका भी औद्योगिक इकाइयों पर प्रतिकूल असर पड़ता है, क्योंकि उन्हें अपने कर्ज पर अधिक ब्याज चुकाना पड़ता है। अगर ये स्थितियां लगातार बनी रहती हैं, तो देश मंदी की तरफ बढ़ना शुरू कर देता है। इसलिए सरकार को ऐसी योजनाओं पर विचार करने की जरूरत है, जिससे रोजगार के अवसर पैदा हों और लोगों के हाथ में कुछ पैसा आना शुरू हो। उन क्षेत्रों की तरफ ध्यान देना चाहिए, जिनमें छोटे स्तर के रोजगार की संभावनाएं अधिक हैं।
तेल की कीमतें बढ़ने से इराक का विदेशी मुद्रा भंडार रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने आईसीबी के सलाहकार एहसान अल-यासेरी के हवाले से कहा, "इराकी सेंट्रल बैंक (आईसीबी) में वित्तीय भंडार (विदेशी मुद्रा का) उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है और भविष्य में 100 अरब डॉलर से अधिक होने की उम्मीद है।" मीडिया।
अल-यासेरी के अनुसार, रूस-यूक्रेन युद्ध के फैलने के बाद से वैश्विक बाजारों में तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण देश के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि हुई है, जिससे इराक और अन्य तेल निर्यातक देशों को लाभ हुआ है।
हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी कि विदेशी मुद्रा भंडार विदेशी मुद्रा की कीमतें का आकार आर्थिक सुधार के लिए एक पूर्ण संकेतक नहीं है क्योंकि सबसे महत्वपूर्ण बात वित्तीय मार्गदर्शन और सरकारी व्यय का अनुशासन है।
इराक की अर्थव्यवस्था कच्चे तेल के निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर करती है, जिसका देश के राजस्व का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है।
रिकॉर्ड निचले स्तर पर रुपया: डॉलर के मुकाबले रुपया 51 पैसे कमजोर होकर 80.47 पर पहुंचा, अमेरिकी केंद्रीय बैंक के ब्याज दर बढ़ाने का असर
भारतीय रुपए में बड़ी गिरावट देखने को मिली है। आज, यानी 22 सितंबर के शुरुआती कारोबार में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 51 पैसे गिरकर अब तक के सबसे निचले स्तर 80.47 रुपए पर खुला है। इससे पहले बुधवार, यानी 21 सितंबर को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 26 पैसे गिरकर 80 के स्तर पर बंद हुआ था।
अमेरिकी केंद्रीय बैंक के ब्याज दर बढ़ाने का असर
अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने बुधवार को लगातार तीसरी बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने ब्याज दरों में 0.75% की बढ़ोतरी की। ब्याज दरें बढ़ाकर 3-3.25% की गई हैं। महंगाई को नियंत्रित करने के लिए लगातार तीसरी बार ब्याज दरें बढ़ी हैं।
अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ जाने से वहां की मुद्रा, यानी डॉलर की कीमत बढ़ जाती विदेशी मुद्रा की कीमतें है। डॉलर मजबूत होने लगता है। इससे डॉलर की तुलना में रुपया जैसी दूसरी करेंसी की वैल्यू घट जाती है। दूसरी तरफ विदेशी निवेशकों द्वारा भारत से पैसा निकाला जाता है, तब भी रुपया कमजोर होगा।
कैसे तय होती है करेंसी की कीमत?
करेंसी के उतार-चढ़ाव के कई कारण होते हैं। डॉलर की तुलना में किसी भी अन्य करेंसी की वैल्यू घटे तो इसे उस करेंसी का गिरना, टूटना, कमजोर होना कहते हैं। अंग्रेजी में - करेंसी डेप्रिशिएशन। हर देश के पास विदेशी मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वह अंतरराष्ट्रीय लेन-देन करता है।
विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से उस देश की मुद्रा की चाल तय होती है। अगर भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर, अमेरिका के रुपयों के भंडार के बराबर है तो रुपए की कीमत स्थिर रहेगी। हमारे पास डॉलर घटे तो रुपया कमजोर होगा, बढ़े तो रुपया मजबूत होगा।
कहां नुकसान या फायदा?
नुकसान: कच्चे तेल का आयात महंगा होगा, जिससे महंगाई बढ़ेगी। देश में सब्जियां और खाद्य पदार्थ महंगे होंगे। वहीं भारतीयों को डॉलर में पेमेंट करना भारी पड़ेगा। यानी विदेश घूमना महंगा होगा, विदेशों में पढ़ाई महंगी होगी।
फायदा: निर्यात करने वालों को फायदा होगा, क्योंकि पेमेंट डॉलर में मिलेगा, जिसे वह रुपए में बदलकर ज्यादा कमाई कर सकेंगे। इससे विदेश में माल बेचने वाली IT और फार्मा कंपनी को फायदा होगा।
करेंसी डॉलर-बेस्ड ही क्यों और कब से?
फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में अधिकांश मुद्राओं की तुलना डॉलर से होती है। इसके पीछे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुआ ‘ब्रेटन वुड्स एग्रीमेंट’ है। इसमें एक न्यूट्रल ग्लोबल करेंसी बनाने का प्रस्ताव रखा गया था। हालांकि, तब अमेरिका अकेला ऐसा देश था जो आर्थिक तौर पर मजबूत होकर उभरा था। ऐसे में अमेरिकी डॉलर को दुनिया विदेशी मुद्रा की कीमतें की रिजर्व करेंसी के तौर पर चुन लिया गया।
कैसे संभलती है स्थिति?
मुद्रा की कमजोर होती स्थिति को संभालने में किसी भी देश के केंद्रीय बैंक का अहम रोल होता है। भारत में यह भूमिका रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की है। वह अपने विदेशी मुद्रा भंडार से और विदेश से डॉलर खरीदकर बाजार में उसकी मांग पूरी करने का प्रयास करता है। इससे डॉलर की कीमतें रुपए के मुकाबले स्थिर करने में कुछ हद तक मदद मिलती है।
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