हमें विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने में प्रवासी भारतीयों का अधिक सहयोग लेना होगा। अतीत में जब विदेशी मुद्रा में तेज गिरावट आई तब प्रवासियों ने मुक्त हस्त से विदेशी विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं मुद्रा कोष को बढ़ाने में सहयोग दिया था। 11 और 13 मई, 1998 को भारत द्वारा किए गए परमाणु परीक्षण पोखरण-2 विस्फोट के बाद अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों को देखते हुए विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत करने हेतु अगस्त, 1998 में रीसर्जेंट इंडिया बॉन्ड्स की मदद से 4.8 अरब डॉलर की राशि जुटाई गई थी। इसी तरह 2001 में इंडिया मिलेनियम डिपॉजिट स्कीम की मदद से करीब 5 अरब डॉलर से अधिक की राशि जुटाई गई। ऐसे प्रयासों से विदेशी मुद्रा भंडार विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं की चिंताएं कम हुई थीं। अब रुपये में वैश्विक कारोबार बढ़ाने के मौके को भी मुट्ठियों में लेकर डॉलर की चिंताओं को कम किया जाना होगा।
कैसा हो इस साल का बजट
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संकेत दिया है कि इस बार का बजट लोकलुभावन नहीं होगा। मतलब यह कि बजट में कुछ कठोर कदम उठाए जा सकते हैं। कठोर कदम का अर्थ अगर महंगाई बढ़ाने से है तो इस समस्या से पहले से ही परेशान जनता को क्या विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं और भी बड़े झटके के लिए तैयार रहना चाहिए? आज की तारीख में शिक्षा महंगी है, यातायात महंगा है। मकानों के किराए और दवाओं से लेकर बुनियादी जरूरत की तमाम चीजें विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं महंगी हैं। सर्विस टैक्स के दायरे में 121 से भी ज्यादा सेवाएं आ गई हैं। अब तो शायद सिर्फ सुलभ शौचालयों पर ही यह टैक्स लगना बाकी रह गया है। ‘सर्विस टैक्स’ से कोर्इ उत्पादन नहीं बढ़ता, रोजगार नहीं बढ़ता। फिर सरकारी खजाना भरने के सिवाय इससे देश का कौन सा बड़ा उद्देश्य सधता है?
आंकड़ों का दम
आज झोपड़पट्टी में रहने वाले भी टीवी देखते हैं, मोबाइल पर बातें करते हैं। मध्यवर्ग के लोग कारों में घूम रहे है, फ्लैटों में रह रहे हैं, इसका अर्थ यह नहीं कि उनकी आर्थिक स्थिति सुधर गई है। मामला सिर्फ यह है कि उन्हें आसान किस्तों पर ऋण उपलब्ध हो रहा है। उनकी आय नहीं बढ़ी है, उनका कर्ज बढ़ गया है। बजट ऐसा होना चाहिए, जिससे उनका कर्ज कम हो और आय बढ़े। सरकार आंकड़ों के दम पर कह रही है कि अर्थव्यवस्था की स्थिति बेहतर हुई है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत अगले दो वर्षों में दुनिया की सबसे तेज अर्थव्यवस्था बना रहेगा और 2016 में इसकी ग्रोथ रेट 7.3 प्रतिशत तथा 2017 में 7.5 प्रतिशत रहेगी। लेकिन सामने कुछ और ही दिख रहा है। बाजारों से रौनक गायब है, शेयर मंडी सूनी पड़ी है। आधे से ज्यादा सरकारी व निजी उद्योग खस्ताहाल हैं। कोई बड़ा प्रॉजेक्ट शुरू होता दिख नहीं रहा।
असंभव के विरुद्ध : रुपया नहीं, सरकार जर्जर है; आक्रामक लोग ही लौटाएंगे खुशहाली
यह पढऩे में अजीब लग सकता है। रुपए के लडख़ड़ाने को लोग कैसे ठीक कर सकते हैं? लोग तो सिर्फ इसका शिकार बन सकते हैं/रहे हैं। आर्थिक हालत तो विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं सिर्फ सरकार ठीक कर सकती है। हमारी अपनी सरकार। संसार भर में कुछ हो रहा हो तो बाहर की सरकारें।
बात सच है। यूं तो सरकार के ही पास यह अधिकार है। जिम्मेदारी है। किन्तु वह अगर नाकारा हो - तो? देश तो नहीं रुकेगा। रुक ही नहीं सकता। जिन्हें आगे बढऩे का जुनून है- वो न तो 'डॉ. मनमोहन सिंह कब मुंह खोलेंगेÓ जैसी अंतहीन प्रतीक्षा में हैं, न ही 'घबराने की ज़रूरत नहीं है, रुपया कुछ ज्य़ादा जरूर गिर गया हैÓ जैसी चिदम्बरम-सांत्वना सुनेंगे। वे तो अपना लक्ष्य साधकर संघर्ष करते चले जाएंगे। कारोबारी। उद्योग/कंपनियों में काम कर रहे प्रोफेशनल्स। तयशुदा तनख्वाह पा रहे आम भारतीय। और सांसारिक कामों में दक्ष वे विदुषी महिलाएं - जो कम से कम पैसों में ज्यादा से ज्यादा अच्छा घर-परिवार चलाती हैं। चला रही हैं। कैसे?
रुपये में वैश्विक कारोबार से घटेगा घाटा
इस समय एक ओर तेजी से बढ़ता देश का व्यापार घाटा तो दूसरी ओर तेजी से घटता हुआ विदेशी मुद्रा भंडार आर्थिक चिंता का बड़ा कारण बन गया है। हाल ही में प्रकाशित विदेश व्यापार के आंकड़े तेजी से बढ़ते व्यापार घाटे विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं का संकेत दे रहे हैं। इस वित्तीय वर्ष 2022-23 में अप्रैल-जून की तिमाही के दौरान भारत का कुल निर्यात बढ़कर 121 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं रहा, वहीं इस अवधि में आयात और तेजी से बढ़कर 190 अरब डॉलर की ऊंचाई पर पहुंच गया। इस तरह इस तिमाही में भारत को 69 अरब डॉलर का घाटा हुआ। जहां जुलाई, 2022 में देश में 66.27 अरब विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं डॉलर मूल्य का आयात किया गया, वहीं 36.27 अरब डॉलर का निर्यात किया गया। ऐसे में जुलाई, 2022 में भी 30 अरब डॉलर का व्यापार घाटा दिखाई दिया। यह व्यापार घाटा पिछले वर्ष जुलाई, 2021 में 10.63 अरब डॉलर था। सालाना आधार पर जुलाई, 2022 में आयात में 43.61 फीसदी वृद्धि हुई है।
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