मुद्रास्फीति पर नियंत्रण के लिए कदम उठाएंगे पीएम : चिदंबरम

गृहमंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि सरकार अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहे मुद्दों पर आने वाले दिनों में ध्यान देगी और देश उच्च वृद्धि दर की राह पर लौटेगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मुद्रास्फीति पर नियंत्रण तथा अर्थव्यवस्था को फिर से उच्च वृद्धि दर की राह पर लाने के लिए और कदम उठाएंगे।

गृहमंत्री ने कहा, 'यह कहना सही नहीं होगा कि (मुद्रास्फीति पर नियंत्रण तथा वृद्धि दर को गति देने के लिए) पहले कदम नहीं उठाए गए। पहले भी कदम उठाए गए थे। लेकिन हमने पाया कि कुछ और कदमों की जरूरत है और मुझे विश्वास है कि प्रधानमंत्री जरूरी कदम उठाएंगे।' उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने बचत व निवेश को बढ़ावा देने तथा राजकोषीय व चालू खाता घाटे पर नियंत्रण जैसे मुद्दों को पहले ही चिह्नित कर चुके हैं।

चिदंबरम ने कहा, 'आने वाले दिनों में आप देखेंगे कि सरकार इन मुद्दों पर ध्यान दे रही है और एक बार हम इन मुद्दों को सुलझा लेंगे तो हम ऊंची वृद्धि दर की राह पर लौट आएंगे।'

Budget 2021: सरकार की योजनाओं को समझने के लिए Inflation, Disinvestment जैसे फाइनेंशियल टर्म्स को समझना है जरूरी

आम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को देश के कुल खर्च, कुल राजस्व, घाटा और ऋण सहित सरकार के वित्त का व्यापक विवरण प्रस्तुत करेंगी

आम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को देश के कुल खर्च, कुल राजस्व, घाटा और ऋण सहित सरकार के वित्त (Finance) का व्यापक विवरण प्रस्तुत करेंगी। सामान्य भाषा में कहें तो बजट सरकार के खर्च और कमाई का लेखा-जोखा होता है। बजट भाषण के दौरान आपने एनुअल फाइनेंसियल स्टेटमेंट (Annual Financial Statement), मुद्रास्फीति (inflation), और विनिवेश (Disinvestment) जैसे कई फाइनेंशियल टर्म सुने होंगे, जिन्हें समझना सरकार के अगले वर्ष की योजना से अवगत होने के लिए बहुत जरूरी है। इन्हीं फाइनेंशियल टर्म्स को समझते हैं आसान भाषा में.

वार्षिक वित्तीय विवरण (Annual financial statement)

आम बजट को उस वर्ष का वार्षिक वित्तीय विवरण (Annual financial statement) भी कहा जाता है। संविधान के आर्टिकल 112 के तहत केंद्र सरकार अपने सभी खर्च और आमदनी का लेखा-जोखा प्रस्तुत करती है। इसके अलावा इससे अगले वित्त वर्ष के लिए सरकार की योजनाओं और उस पर होने वाले खर्च के अनुमान के बारे में भी पता चलता है। आपको बता दें कि बजट या Annual financial statement के लिए सरकार को संसद से मंजूरी लेनी होती है। संसद की मंजूरी के बिना केंद्र सरकार भारत का समेकित कोष (Consolidated Fund of India) से एक रुपये की नहीं निकाल सकती है।

मुद्रास्फीति (Inflation)

प्रोडक्ट्स और सर्विसेज के मूल्य में होने वाली वृद्धि को मुद्रास्फीति कहा जाता है। आसान भाषा में इसे महंगाई कहते हैं। जब डिमांड और सप्लाई में असंतुलन पैदा होता है तो प्रोडक्ट्स और सर्विसेज की कीमतें बढ़ जाती हैं। कीमतों में यह वृद्धि ही मुद्रास्फीति कहलाती है। भारत में मुद्रास्फीति की गणना दो मूल्य सूचियों के आधार पर होता है। थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index- WPI) एवं मुद्रास्फीति निवेश के लिए क्या करती है? उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) मुद्रास्फीति के कई प्रकार होते हैं जो अर्थव्यवस्था की अलग-अलग स्थितियों को दर्शाते हैं।
1. Creeping मुद्रास्फीति निवेश के लिए क्या करती है? Inflation (धीरे-धीरे बढ़ता हुआ)- इसमें महंगाई धीरे-धीरे बढ़ती है। यानी 1 साल में करीब 10% तक महंगाई बढ़ जाती है।
2. Galloping Inflation (तेजी से बढ़ने वाली)- इसमें महंगाई तेजी से बढ़ती है, जैसे 20% की दर सं महंगाई बढ़ना।
3. Hyperinflation (अति मुद्रास्फीति- इसमें महंगाई काफी तेजी से बढ़ती है यानी 1 साल में 30% से भी ज्यादा।
4. Stagflation (रुकी हुई मुद्रास्फीति)- इसमें मुद्रास्फीति की स्थिति न तो बढ़ती है न ही घटती है।
5. Deflation: (अपस्फीति)- इसमें मुद्रास्फीति की दर एक दम कम हो जाती है।

विनिवेश (Disinvestment)

सार्वजनिक उपक्रमों (PSUs) में सरकार की हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया विनिवेश या डिसइन्वेस्टमेंट (Disinvestment) कहलाती है। अक्सर आम बजट में सरकार आगामी वित्त वर्ष के लिए विनिवेश का लक्ष्य तय करती है। सरकार के लिए विनिवेश पैसे जुटाने का महत्वपूर्ण जरिया है। सरकार शेयर बाजार में अपने हिस्से के शेयर की बिक्री का ऑफर जारी कर खुदरा और संस्थागत निवेशकों को PSU में निवेश करने के लिए आमंत्रित करती है। विनिवेश की इस प्रक्रिया के जरिए सरकार अपने शेयर बेचकर संबंधित कंपनी में अपना मालिकाना हक घटा लेती और इससे प्राप्त पासे को दूसरी योजनाओं पर मुद्रास्फीति निवेश के लिए क्या करती है? खर्च करती है। विनिवेश या तो किसी निजी कंपनी के हाथ किया जा सकता है या फिर उनके शेयर पब्लिक में जारी किए जा सकते हैं।

उच्च मुद्रास्फीति और ब्याज दरों में बढ़ोतरी के कारण एवं समग्र प्रभाव

दुनिया भर के शेयर बाजार निवेशकों को संयुक्त राज्य अमेरिका के फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी की रिपोर्ट ने हिला दिया है। कई लोगों ने अनुमान लगाया है, कि यूएस फेड द्वारा इस तरह की कार्रवाई अन्य देशों को मुद्रास्फीति नियंत्रण में रखने के लिए कठोर रुख अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेगी। हालाँकि, इस तरह के कदम से अंततः वैश्विक शेयर बाजार में गिरावट आ सकती है!

इस लेख में, हम ब्याज दरों में बढ़ोतरी के पीछे के घटको के बारे में जानेंगे और पता लगाएंगे कि क्या हमें वास्तव में इस फैसले से डरने की जरूरत है।

सबसे पहले, आइए हम व्यापार चक्र की बुनियादी व्यापक आर्थिक संकल्पना को समझें। व्यवसाय और अर्थव्यवस्था समग्र रूप से एक सीधी रेखा में नहीं चलते। अर्थव्यवस्था में विस्तार और संकुचन होते रहते हैं (जैसे लहरो के उतार-चढ़ाव)। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था का विस्तार होता है, इन तरंगों की दीर्घकालिक प्रवृत्ति हमेशा सकारात्मक पूर्वाग्रह में होती है।

कोविड -19 महामारी के कारण आर्थिक दबाव के परिणामस्वरूप, हर देश की सरकार और केंद्रीय बैंकों के लिए अपनी अर्थव्यवस्था का विस्तार करना आवश्यक था। इसलिए, उन्होंने अविश्वसनीय प्रोत्साहन पैकेज और कम रेपो दरों के साथ अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया। रेपो दर वह ब्याज दर है, जिस पर केंद्रीय बैंक (जैसे भारतीय रिजर्व बैंक और यूएस के फेडरल रिजर्व) वाणिज्यिक बैंकों को उधार देते हैं।

व्यवसाय और आम आदमी, पैकेज का लाभ उठाने और आसानी से ऋण प्राप्त करने में सक्षम थे। जैसे-जैसे वैश्विक अर्थव्यवस्था कोविड के उच्च टीकाकरण दरों के साथ पुनर्जीवित होने लगी, देशों के सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product – GDP) में तेजी आई और बेरोजगारी में भारी कमी आई। नागरिकों ने उत्पादों और सेवाओं पर अधिक खर्च करना शुरू कर दिया, क्योंकि अब उनकी जेब में अधिक नकदी थी। हालांकि, आपूर्तिकर्ता उच्च मांग को पूरा नहीं कर सके! जैसे ही मांग पक्ष आसमान छू गया, आपूर्ति पक्ष टूट गया। आपूर्ति श्रृंखला मौजूदा मांग को पूरा करने में असमर्थ थी, जिससे मुद्रास्फीति होती है। (मुद्रास्फीति के बारे में अधिक पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)।

ऊपर दिखाए गए ग्राफ में आप अमेरिका में महंगाई का असर साफ -साफ देख सकते हैं। यह अब 40 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। दिसंबर 2021 में महंगाई दर पिछले साल की तुलना में 7% थी। आइए अन्य देशों की मुद्रास्फीति दरों पर एक नजर डालते हैं।

अब हम विस्तार चरण के अंत में हैं, और अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है। दूसरी ओर, जैसे-जैसे मुद्रास्फीति फैलनी शुरू हुई, शेयर बाजारों में कई गुना तेजी आई है और आज बाजार अपने उच्च मूल्यांकन पर हैं। अगर महंगाई पर काबू नहीं पाया गया, तो अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा जाएगी।

सरकारें इस मुद्दे को कैसे हल करती हैं? यहीं से केंद्रीय बैंकों की मौद्रिक शक्ति सामने आती है। फेडरल रिजर्व अब उन ब्याज दरों में वृद्धि कर सकता है, जो एक बार संकुचन अवधि में कम हो गई थीं। आगे बढ़ते हुए उद्योगों और व्यक्तियों के लिए ऋण प्राप्त करना शायद कठिन होगा। इस कदम से अर्थव्यवस्था में बहने वाले पैसे में गिरावट आएगी। अंतत: महंगाई कम होगी।

शेयर बाजारों पर प्रभाव

सभी निवेशक उन शेयरों को महत्व देते हैं, जो उन्हें भविष्य में अच्छे रिटर्न दे सकते है। उदाहरण के लिए, कई लोगों ने नायका, पेटीएम और ज़ोमैटो जैसी अत्यधिक मूल्यवान स्टार्टअप कंपनियों में इस इरादे से निवेश किया है, कि वे अपने संबंधित क्षेत्रों में अच्छे हैं। इसके अलावा, ये फर्म भविष्य में बेहतर बिक्री और कमाई करेगी यह आशा है।

ब्याज दरों में वृद्धि से लोगों में लिक्विडिटी कम होगी। वे कम खर्च करना शुरू कर देंगे और अपने खर्चों में कटौती करेंगे, जो अंततः कंपनियों की बिक्री को प्रभावित करता है। जाहिर है, कंपनियों का मूल्यांकन सवालों के घेरे में आ जाएगा और निवेशकों की इन शेयरों पर मंदी की भावना होगी। इस प्रकार, भविष्य की आय के साथ मूल्यवान किसी भी क्षेत्र में ब्याज दरों में बढ़ोतरी होने पर उच्च जोखिम होता है।

उपरोक्त पांच साल के चार्ट में, हम देख सकते हैं कि अतीत में प्रत्येक सेक्टोरल इंडेक्स कैसे आगे बढ़ा है। साफ है कि, निफ्टी 50 के मुकाबले आईटी कंपनियों में कहीं ज्यादा तेजी आई है।

निष्कर्ष

यदि नियंत्रित नहीं किया गया, तो मुद्रास्फीति किसी राष्ट्र की संपत्ति को नष्ट कर सकती है। दरअसल, अमेरिकी फेडरल रिजर्व की कार्रवाई से अर्थव्यवस्था में अल्पकालिक धन की कमी पैदा होगी। हालांकि, यह लंबी अवधि में अधिक विस्तार को बढ़ावा देगा।

यूएस फेडरल रिजर्व की दिसंबर नीति बैठक के मिनट्स जारी होने के बाद (फेड मिनट्स के बारे में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें), यूएस का NASDAQ इंडेक्स, जिसमें टेक शेयरों का वेटेज अधिक है, 7% से अधिक गिर गया। हालांकि, भारतीय बाजारों में उतनी गिरावट नहीं आई।

आगे बढ़ते हुए, हम भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ऐसी ही कार्रवाइयों को देख पाएंगे जो भारतीय बाजारों को हिला सकती हैं। अत्यधिक उपभोक्ता-केंद्रित कंपनियों और तकनीकी फर्मों के स्टॉक अल्पकालिक मंदी के चरण में आ सकते हैं, क्योंकि उनकी बिक्री/आय अनुमान (जिससे उनका वर्तमान मूल्यांकन जुड़ा हुआ है) से शायद गिर जाएगा।

ब्याज दरों में बढ़ोतरी पर आपकी क्या राय है? क्या आपको लगता है, कि यह हमारे बाजारों को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा? हमें मार्केटफीड ऐप के कमेंट सेक्शन में बताएं।

लोन होगा और महंगा, RBI ने रेपो रेट में 0.35 प्रतिशत की बढ़ोतरी की

RBI Governor Shaktikanta Das, RBI monetary policy r

RBI ने साल 2022 में लगातार पांचवीं बार रेपो दर में बढ़ोतर की है.

7 दिसंबर को रिजर्व बैंक ने रेपो दर को 0.35 प्रतिशत बढ़ाने की घोषणा की है.

अब रेपो दर 5.90 प्रतिशत से बढ़कर 6.25 प्रतिशत हो जाएगी.

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने साल 2022 में लगातार पांचवीं बार रेपो दर में बढ़ोतर की है. 7 दिसंबर को रिजर्व बैंक ने रेपो दर को 0.35 प्रतिशत बढ़ाने की घोषणा की है. अब रेपो दर 5.90 प्रतिशत से बढ़कर 6.25 प्रतिशत हो जाएगी. आम आदमी पर इसका असर महंगे कर्ज के रूप में पड़ेगा. होम लोन समेत अन्य तरह के कर्ज और महंगे हो जाएंगे. लोगों को अब अधिक किस्तें चुकानी होंगी.

RBI ने इससे पहले मई में 0.40 प्रतिशत और जून, अगस्त, सितंबर महीने में 0.50-0.50 प्रतिशत रेपो रेट बढ़ाया था. RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बताया कि अगले 12 महीनों में मुद्रास्फीति दर 4 प्रतिशत से ऊपर रहने की उम्मीद है.

RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास ने क्या-क्या कहा-

* अप्रैल-अक्टूबर के दौरान भारतीय रुपये में वास्तविक रूप से 3.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि अन्य प्रमुख मुद्राओं में गिरावट आई है.

* एफडीआई प्रवाह अप्रैल से अक्टूबर 2022 में बढ़कर 22.7 अरब डॉलर हो गया, जो पिछले साल की इसी अवधि में 21.3 अरब डॉलर था.

* FY23 के लिए CPI मुद्रास्फीति का पूर्वानुमान 6.7 प्रतिशत पर बरकरार है.

* रेपो रेट में 0.35% की बढ़ोतरी हुई, 0.35 प्रतिशत बढ़ाकर 6.25 प्रतिशत हुआ.

* स्टैंडिग डिपोजिट फैसिलिटी (SDF रेट) को 6 प्रतिशत और मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF रेट) और बैंक रेट को 6.5 प्रतिशत तक एडजस्ट किया गया है.

* अगले 12 महीनों में मुद्रास्फीति दर 4 प्रतिशत से ऊपर रहने की उम्मीद है.मुद्रास्फीति निवेश के लिए क्या करती है?

क्या होता है रेपो रेट

रेपो रेट वह दर होती है, जिस पर बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंक कर्ज देता है. रेपो रेट कम होने से मतलब है कि बैंक से मिलने वाले कई प्रकार के कर्ज सस्ते हो जाएंगे. जैसे कि व्हीकल लोन,होम लोन आदि. जब बैंकों को कम दर पर लोन उपलब्ध होगा वे भी ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए अपनी ब्याज दरों को कम कर सकते हैं. क्योकिं लोन लेने वाले ग्राहकों में अधिक बढ़ोतरी की जा सके और अधिक रकम लोन पर दी जा सके. रेपो रेट बढ़ने पर इसका असर उल्टा होगा और कर्ज महंगे हो जाएंगे.

EPFO Subscribers: बड़ी खबर! क्या अभी तक जमा नहीं हुआ PF का ब्याज? जल्द चेक करें नया अपडेट

EPFO Subscribers Interest: कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) एक बचत साधन है जो वेतनभोगी कर्मचारियों को उनके भविष्य के लिए बचत करने में मदद करता है। यह योजना कर्मचारियों को हर महीने एक छोटी सी राशि डालकर अपने सेवानिवृत्ति कोष को बड़ी रकम में निर्माण करने में मदद करती है। कर्मचारी और नियोक्ता दोनों कर्मचारी के खाते में योगदान करते हैं।

हालांकि, पिछले कुछ समय से, ग्राहकों को उनके पीएफ की ब्याज राशि उनके खाते में जमा नहीं हुई है। इंफोसिस के पूर्व सीएफओ और पूर्व निदेशक टीवी मोहनदास पई के एक ट्वीट का जवाब देते हुए वित्त मंत्रालय ने इस बारे में कहा था, ‘ब्याज भुगतान में देरी का मतलब पैसे का नुकसान नहीं है।’

कहां हुई दिक्कत?

वित्त मंत्रालय ने ट्वीट किया, ‘किसी भी ग्राहक के लिए ब्याज की कोई हानि नहीं होती है। ब्याज सभी ईपीएफ ग्राहकों के खातों में जमा किया जा रहा है। हालांकि, यह ईपीएफओ द्वारा लागू किए जा रहे एक सॉफ्टवेयर अपग्रेड के मद्देनजर दिखाई नहीं दे रहा है ताकि कर की घटनाओं में बदलाव हो सके।’

आगे कहा गया है, ‘निपटान चाहने वाले सभी आउटगोइंग सब्सक्राइबर्स और निकासी चाहने वाले सब्सक्राइबर्स के लिए भुगतान ब्याज सहित किया जा रहा है।’

बता दें कि इस साल जून में, वित्त मंत्रालय ने कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के प्रस्ताव को 2021-2022 में EPF निवेश पर ब्याज दर को 8.5% से घटाकर 8.1% करने के प्रस्ताव मुद्रास्फीति निवेश के लिए क्या करती है? को अपनी मंजूरी दे दी। केंद्र की मंजूरी के साथ, ईपीएफ ब्याज दर अब 40 वर्षों में सबसे कम है। पिछली बार ब्याज दर 8.1% से कम थी जो 1977-78 में थी, तब यह 8% थी। हालांकि, ऐसे समय में जब मुद्रास्फीति की दर ऊंची बनी हुई है, ईपीएफ निवेश पर कम रिटर्न निवेशकों के कान खड़े कर सकता है।

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